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________________ ।। ओम् ।। उदयाधिकार पहले उदय और उदीरणा का लक्षण कहते हैं, अनन्तर प्रत्येक गुणस्थान में जितनी-जितनी कर्म-प्रकृतियों का उदय तथा उदीरणा होती है उनको बारह गाथाओं से दिखाते हैं उदओ विवाग-वेयण मुदीरण मपत्ति इह दुवीससयं। सतर-सयं मिच्छे मीस-सम्म-आहार-जिणणुदया ।।१३।। उदयो विपाक-वेदन मुदीरणमप्राप्त इह द्वाविंशति-शतम्। सप्तदश-शतं मिथ्यात्वेमिश्र- सम्यगाहारक-जिनानुदयात् ।।१३।। अर्थ-विपाक का समय प्राप्त होने पर ही कर्म के विपाक (फल) को भोगना उदय कहते हैं और विपाक का समय प्राप्त न होने पर कर्मफल को भोगना 'उदीरणा' कहते हैं। उदय-योग्य तथा उदीरणा-योग्य कर्म-प्रकृतियाँ १२२ हैं। उनमें से ११७ कर्म-प्रकृतियों का उदय पहले गुणस्थान में हो सकता है, क्योंकि १२२ में से मिश्रमोहनीय, सम्यक्त्वमोहनीय, आहारक-शरीर, आहारकअङ्गोपाङ्ग और तीर्थङ्करनामकर्म इन पाँच कर्म-प्रकृतियों का उदय पहले गुणस्थान में नहीं होता।।१६।। भावार्थ-आत्मा के साथ लगे हये कर्म-दलिक, नियत समय पर अपने शुभाशुभ-फलों का जो अनुभव कराते हैं वे 'उदय' कहलाते हैं। कर्म-दलिकों को प्रयत्न-विशेष से खींचकर नियत-समय के पहले ही उनके शुभाशुभ फलों को भोगना, 'उदीरणा' कहलाती है। कर्म के शुभाशुभ फल के भोगने का ही नाम उदय तथा उदीरणा है, किन्तु दोनों में भेद इतना ही है कि एक में प्रयत्न के बिना ही स्वाभाविक क्रम से फल का भोग होता है और दूसरे में प्रयत्न के करने पर ही फल का भोग होता है। कर्म-विपाक के वेदन को उदय तथा उदीरणा कहने का अभिप्राय यह है कि प्रदेशोदय, उदयाधिकार में इष्ट नहीं है। तीसरी गाथा के अर्थ में बन्ध-योग्य १२० कर्म-प्रकृतियाँ कही हुई हैं, वे तथा मिश्र-मोहनीय और सम्यक्त्व-मोहनीय ये दो, कुल १२२ कर्म-प्रकृतियाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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