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________________ कर्मग्रन्थभाग-२ कर्म-प्रकृतियाँ शेष रहती हैं। परन्तु आहारक-शरीर तथा आहारक-अङ्गोपाङ्ग इन दो कर्म-प्रकृतियों को उक्त दोनों प्रकार के जीवों की अपेक्षा से सातवें गुणस्थान में उक्त ५७ और २ कुल ५९ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध माना जाता है। दूसरे प्रकार के जीवों की अपेक्षा से उक्त ५६ और २-कुल ५८ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध सातवें गुणस्थान में माना जाता है।।६७॥८॥ अडवम्न अपुव्वाइंमि निद्द दुगंतो छपन्न पणभागे। सुर दुग पणिंदि सुखगइ, तसनव उरलविणु तणुवंगा ।।९।। अष्टापञ्चाशदपूर्वादौ निद्राद्विकान्तः षट्पञ्चाशत् पञ्चभाग। सुरद्विक पञ्चेन्द्रिय सुखगति त्रसनवकमौदारिकाद्विना तनूपाङ्गानि।।९।।७।। समचउरनिमिण जिणवण्ण अगुरुलहु चउ छलंसि तीसंतो। चरमे छवीस बंधो हासरई कुच्छभयभेओ ।।१०।। समचतुरस्रनिर्माण जिनवर्णाऽगुरुलघुचतुष्कं षष्ठांशे त्रिंशदन्तः चरमे षड्विंशतिबन्यो हास्यरतिकुत्साभयभेदः।।१०।। अनियट्ठि भागपणगे, इगेग हीणो दुवीसवीहबंधो। पुम संजलण चउण्हं, कमेण छेओ सतरसुहुमे ।।११।। अनिवृत्ति भागपञ्चक, एकैकहीनो द्वाविंशतिविधवन्यः। पुंसंज्वलन चतुर्णो क्रमेणच्छेदः सप्तदशसूक्ष्मे ।।११।। अर्थ-आठवें गुणस्थान के पहले भाग में ५८ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध हो सकता है। दूसरे भाग से लेकर छठे भाग तक पाँच भागों में ५६ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध होता है। क्योंकि निद्रा और प्रचला इन दो कर्म-प्रकृतियों का बन्ध विच्छेद पहले भाग के अन्त में ही हो जाता है। इससे वे दो कर्म-प्रकृतियाँ आठवें गुणस्थान के पहले भाग के आगे बाँधी नहीं जा सकती। तथा सुरद्विक (२) (देवगति देव-आनुपूर्वी), पञ्चेन्द्रियजाति, (३) शुभ-विहायोगति (४), सनवक (१३) (स, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर और आदेय), औदारिक शरीर के अतिरिक्त चार शरीर नामकर्म, जैसे-वैक्रियशरीरनामकर्म (१४), आहारक-शरीरनामकर्म (१५), तैजस्रशरीरनामकर्म, (१६) और कार्मण-शरीरनामकर्म (१७), औदारिक-अङ्गोपाङ्ग को छोड़कर दो अङ्गोपाङ्ग, वैक्रिय-अङ्गोपाङ्ग- (१८) तथा आहारक-अङ्गोपाङ्ग (१९)। समचतुरस्रसंस्थान (२०), निर्माणनामकर्म (२१), तीर्थङ्करनामकर्म (२२), वर्ण (२३), गन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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