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________________ ८६ कर्मग्रन्थभाग-२ अबाधा काल व्यतीत हो चकने पर भी जो कर्मदलिक पीछे से उदय में आने वाले होते हैं, उनको प्रयत्नविशेष से खींचकर उदय-प्राप्त दलिकों के साथ भोग लेना 'उदीरणा' है। बँधे हुये कर्म का अपने स्वरूप को न छोड़कर आत्मा के साथ लगा रहना 'सत्ता' कहलाती है। [बद्ध-कर्म, निर्जरा से और संक्रमण से अपने स्वरूप को छोड़ देता है। बँधे हुये कर्म का तप-ध्यान-आदि साधनों के द्वारा आत्मा से अलग हो जाना 'निर्जरा' कहलाती है। जिस वीर्य-विशेष से कर्म, एक स्वरूप को छोड़ दूसरे सजातीय स्वरूप को प्राप्त कर लेता है, उस वीर्य विशेष का नाम ‘संक्रमण' है। इस तरह एक कर्म-प्रकृति का दूसरी सजातीय कर्म-प्रकृतिरूप बन जाना भी संक्रमण कहलाता है। जैसे—मतिज्ञानावरणीय-कर्म का श्रुतज्ञानावरणीय-कर्म रूप में बदल जाना या श्रुतज्ञानावरणीय-कर्म का मतिज्ञानावरणीय-कर्म रूप में बदल जाना। क्योंकि ये दोनों प्रकृतियाँ ज्ञानावरणीय कर्म का भेद होने से आपस में सजातीय हैं।] प्रत्येक गुणस्थान में जितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्ध हो सकता है, जितनी कर्म-प्रकृतियों का उदय हो सकता है, जितनी कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा की जा सकती है और जितनी कर्म-प्रकृतियाँ सत्तागत हो सकती हैं, उनका क्रमश: वर्णन करना, यही ग्रन्थकार का उद्देश्य है। इस उद्देश्य को ग्रन्थकार ने भगवान् महावीर की स्तुति के बहाने से इस ग्रन्थ में पूरा किया है।।१।। ___पहले गुणस्थानों को दिखाते हैंमिच्छे सासण मीसे अविरय देसे पमत्त अपमत्ते। नियट्टि अनियट्टि सुहुसु वसम खीण सजोगि अजोगिगुणा ।।२।। (मिथ्यात्वासस्वादनमिश्रमविरतदेशं प्रमत्ताप्रमत्तम्। निवृत्यनिवृति सूक्ष्मोपशम क्षीणसयोग्यऽ योगिगुणाः ।।२।। अर्थ-गुणस्थान के १४ (चौदह) भेद हैं। जैसे—(१) मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, (२) सास्वादन (सासादन) सम्यग्दृष्टि गुणस्थान, (३) सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्र) गुणस्थान, (४) अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान, (५) देशविरत गुणस्थान, (६) प्रमत्तसंयत गुणस्थान, (७) अप्रमत्तंसयत गुणस्थान, (८) निवृत्ति (अपूर्वकरण), गुणस्थान (९) अनिवृत्तिबादर सम्पराय गुणस्थान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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