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________________ ७२ कर्मग्रन्थभाग-१ २. दाता उदार हो, दान की चीजें मौजूद हों, याचना में कुशलता हो तो भी जिस कर्म के उदय से लाभ न हो, वह 'लाभान्तरायकर्म' है। यह न समझना चाहिये कि लाभान्तराय का उदय याचकों को ही होता है। यहाँ तो दृष्टान्त मात्र दिया गया है। योग्य सामग्री के रहते हुए भी अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति जिस कर्म के उदय से नहीं होने पाती वह 'लाभान्तराय' ऐसा कर्म का अर्थ है। ३. भोग के साधन मौजूद हों, वैराग्य न हो, तो भी, जिस कर्म के उदय से जीव, भोग्य चीजों को न भोग सके, वह ‘भोगान्तरायकर्म' है। ४. उपभोग की सामग्री मौजूद हो, विरति-रहित हो तथापि जिस कर्म के उदय से जीव उपभोग्य पदार्थों का उपभोग न ले सके वह 'उपभोगान्तरायकर्म' है। . जो पदार्थ एक बार भोगे जायें, उन्हें भोग कहते हैं, जैसे कि फल, फूल, जल, भोजन आदि। जो पदार्थ बार-बार भोगे जायें उनको उपभोग कहते हैं, जैसे कि मकान, वस्त्र, आभूषण, स्त्री आदि। ५. वीर्य का अर्थ है- सामर्थ्य। बलवान् हो, रोग रहित हो, युवा हो तथापि जिस कर्म के उदय से जीव एक तृण को भी टेढ़ा न कर सके, उसे 'वीर्यान्तरायकर्म' कहते हैं। वीर्यान्तराय के अवान्तर भेद तीन हैं-१. बालवीर्यान्तराय, २. पण्डितवीर्यान्तराय और ३. बालपण्डितवीर्यान्तराय। १. सांसारिक कार्यों को करने में समर्थ हो तो भी जीव, उनको जिसके उदय से न कर सके, वह 'बालवीर्यान्तरायकर्म'। २. सम्यग्दृष्टि साधु, मोक्ष की चाह रखता हुआ भी, तदर्थ क्रियाओं को, जिसके उदय से न कर सके, वह 'पण्डितवीर्यान्तरायकर्म' है। ३. देश-विरति को चाहता हुआ भी जीव, उसका पालन, जिसके उदय से न कर सके, वह 'बालपण्डितवीर्यान्तरायकर्म' है। ___ 'अन्तरायकर्म भण्डारी के सदृश है' सिरिहरियसमं एयं जह पडिकूलेण तेण रायाई । न कुणइ दाणाईयं एवं विग्घेण जीवोवि ।।५३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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