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________________ कर्मग्रन्थभाग- १ 'चौबीसवीं गाथा में चौदह पिण्डप्रकृतियाँ कही गई हैं, अब उनके उत्तरभेद कहे जायँगे, पहले तीन पिण्डप्रकृतियों के गति, जाति तथा शरीर नाम के उत्तर - भेदों को इस गाथा में कहते हैं। निरयतिरिनरसुरगई ओरालविउव्वाहारगतेयकम्मण पण 'इगबियतियचउपणिदिजाइओ | सरीरा ।। ३३ ।। (निरयतिरिनरसुरगई) नरकगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति और देवगति ये चार गतिनाम-कर्म के भेद हैं। (इगबियतिय चउपणिदिजाइओ) एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय ये जातिनाम के पाँच भेद हैं। (ओरालविउव्वाहारगतेयकम्मणपणसरीरा) औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, और कार्मण, ये पाँच शरीरनाम के भेद हैं ||३३|| भावार्थ — गतिनामकर्म के चार भेद १. जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसी अवस्था प्राप्त हो कि जिससे 'यह नारक - जीव है' ऐसा कहा जाय, उस कर्म को नरकगति नामकर्म कहते हैं। २. जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसी अवस्था प्राप्त हो कि जिसे देख ‘यह तिर्यञ्च है' ऐसा कहा जाय, उस कर्म को तिर्यञ्चगति नामकर्म कहते हैं । ३. जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसी अवस्था प्राप्त हो कि जिसे देख 'यह मनुष्य है' ऐसा कहा जाय, उस कर्म को मनुष्यगति नामकर्म कहते हैं। ४. जिस कर्म के उदय से जीव को ऐसी अवस्था प्राप्त हो कि जिसे देख 'यह देव है' ऐसा कहा जाय, उस कर्म को देवगति नामकर्म कहते हैं । जातिनामकर्म के पाँच भेद १. जिस कर्म के उदय से जीव को सिर्फ एक इन्द्रिय- त्वगिन्द्रिय की प्राप्ति हो उसे एकेन्द्रिय जातिनामकर्म कहते हैं। ४८ २. जिस कर्म के उदय से जीव को दो इन्द्रियाँ - त्वचा और जीभप्राप्त हो, वह द्वीन्द्रिय जातिनामकर्म है। ३. जिस कर्म के उदय से तीन इन्द्रियाँ - त्वचा, जीभ और नाक- प्राप्त हों, वह त्रीन्द्रिय जातिनामकर्म है। ४. जिस कर्म के उदय से चार, इन्द्रियाँ - त्वचा, जीभ, नाक और आँख - प्राप्त हों वह चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्म है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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