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________________ ५६४ ] सेतुबन्धम् [त्रयोदश अहिधावन्तपवङ्गममुक्कंसणिराजकेसरसडुग्घाअम् । मज्झन्तभाअणिवडिअदण्डाउहभिण्णमाहिलोविद्धभडम् ॥२६॥ [ अभिधावत्प्लवङ्गममुक्तांसनिरायतकेसरसटोद्धातम् । मध्यान्तभागनिपतितदण्डायुधभिन्नमहीतलापविद्धभटम् ॥] एवम्-अभिधावतां प्लवङ्गमानां मुक्तो विकीर्णः सन्नंसेषु निरायतो दीर्घः केसरसटानामुद्धातो यत्र। जवजन्यसंस्कारात् । एवम्-मध्यस्यान्तभागेन निपतितं यद्दण्डरूपमायुधं तेन भिन्नाः सन्तो महीतलेऽपविद्धा पातिता भटा यत्र तत् ॥२६॥ विमला-वेग से दौड़ने के कारण वानरों के लम्बे-लम्बे केसर ( गरदन के बाल ) कन्धे पर बिखर गये थे एवं मध्यान्त भाग के बल गिरे हुये दण्डरूप आयुध ने भटों को महीतल पर गिरा दिया था ॥२६॥ गहिअसिरदवाणरणिसाबरोरत्थलद्धरोविअदाढम् । णहधरिअपव्वप्रोज्झरसीअरतण्णाअगरुइओसण्ण रअम् ॥३०॥ [ गृहीतशिरोदष्टवानरनिशाचरोरःस्थलार्धरोपितदंष्ट्रम् । नभोधृतपर्वतनिर्झरशिकरार्द्रगुरुकितावसन्नरजः ॥] एवम् -गृहीते आक्रम्य धृते शिरसि दष्टा ये वान रास्तनिशाचराणामुरःस्थ लेडधरोपिता दंष्ट्रा यत्र । रक्षोभिः कपीनां शिरः कवलितम, कपिभिस्तेषां वक्षसि दंष्ट्रा निखातेत्यर्थः । तत्र शिरसः कवलितत्वेन दंष्ट्राणामत्यन्तप्रेरणाभावादर्धनिमग्नत्वमिति भावः। एवम्-नभसि धृतानां पर्वतानां निर्झरशीकरैरार्द्रत्वाद्गुरूणि सन्त्यवसन्नानि पतितानि रजांसि यत्रेति युद्धसोकर्यमुक्तम् ॥३०॥ विमला-राक्षसों ने आक्रमण कर वानरों का सिर पकड़ कर उसे कवलित कर लिया तब वानरों ने उनके वक्षःस्थल में अपनी दंष्ट्रा घुसेड़ दी, किन्तु सिर कवलित होने के कारण दंष्ट्रा आधी ही घुस पायी। आकाश में धृत पर्वतों की धूल जो भूमि पर गिरती थी वह निर्झर शीक रों से आर्द्र होने के कारण कुछ गुरु ( हल्की नहीं) थी ( अतएव उससे युद्ध में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी)॥३०॥ सरहिहत्थअलाहअमहपडिउटिठअतुरणि व्व ढरहम् । सरघास चुष्णिोडिअपवावीअरुहिरसरिआसोत्तम् ॥३१॥ _(आइकुलअम्) [ सारथिहस्ततलाहतमुखपतितोत्थिततुरङ्गनियूं ढरथम् ।। शरघातचूणितावपतितपर्वतापीतरुधिरसरित्स्रोतः ॥] (आदिकुलकम् ) किंभूतम् । प्रथम संभ्रमेण पतिताः, तदनु सारथिना हस्ततलेनाहलमुखत्वादुत्थिता ये तुरङ्गास्तै नियूंढाः संचारिता रथा यत्र । एवम्-रक्षःशरघातेन चूर्णिताः सन्तः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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