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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [ ४६५ स्वनिष्ठा च यत्र तत् । यद्वा-'विस्मृतवियोग-' इति विशेषणद्वयविशिष्टं यथा स्यादेवं मूर्छानिमीलिताक्ष्या तया केवलं सुखं लब्धमित्यन्वयः। नयनानिमीलनेन शिरोदर्शनजन्यमपि दुःखं नाभूदिति भावः ॥५८।। विमला-मूर्छा से मुंदी आखों वाली जनकपुत्री को विरह का दुःख बिसर गया, तत्क्षण राम-मरणजन्य पीड़ा विस्मृत हो गयी, इस प्रकार उन्हें उस समय केवल सुख प्राप्त हुआ ॥५८|| अथ कालेन श्वासपरावृत्तिमाहथणपरिणाहोत्थइए तीए हिअअम्मि पअणुअंपि ण दिट्ठम् । दोहं पि समूससि सूइज्जइ गवर वेविरे अहरोठे ॥५६॥ [ स्तनपरिणाहावस्थगिते तस्या हृदये प्रतनुकमपि न दृष्टम् । दीर्घमपि समुच्छ्वसितं सूच्यते केवलं वेपनशीलेऽधरोष्ठे ॥] स्तनयोः परिणाहेन विशालतयावस्थगिते व्याप्ते तस्या हृदये प्रतनुकमल्पमपि न दृष्टम् । चक्षुःस्पन्दापरिज्ञानान्न लक्षितम् । दीर्घ महदपि समुच्छ वसितं निश्वासः केवलमधरोष्ठे वेपनशीले कम्पिते सति सूच्यते । श्वासं विना कथमधरोष्ठकम्प इति परं तर्यंत इत्यर्थः। एतेन स्तनयोराभोगशालित्वमधरोष्ठस्य च तनुत्वं सूचितम् ॥५६॥ विमला-उनकी लम्बी सांस भी स्तनों की विशालता से व्याप्त हृदय पर तनिक भी नहीं दिखायी पड़ी; केवल काँपते अधरोष्ठ पर सूचित हो रही थी ( सांस के विना अधरोष्ठ कांपता क्यों ? ) ॥५६॥ अथ मोहोपशान्ती चक्षुरुन्मीलनमाहअपरिप्फुडणीसासा तो सा मोहविरमे विणीसहपरिमा। अणुवज्झबाहगरुइअदुक्खसमध्वूढतारअं उम्मिल्ला ॥६०॥ [ अपरिस्फुटनिःश्वासा ततः सा मोहविरामेऽपि निःसहपतिता। अनुबद्धबाष्पगुरूकृतदुःखसमुद्वयूढतारकमुन्मीलिता ॥] ततः श्वासपरावृत्त्यनन्तरं न परि सर्वतोभावेन स्फुटो व्यक्तो निश्वासो यस्यास्तथाविधातळमाणनिश्वासा सा मूर्छाविरामेऽपि निःसहं निश्चेष्टं यथा स्यादेवं पतिता सत्युन्मीलिता चक्षुरुन्मुद्रणं चकारेत्यर्थः । अनुबद्धेन ज्ञाने सति तदानीमु. त्पन्नेन बाष्पेणाश्रुबिन्दुगुरूकृते यन्त्रिते अत एव दुःखेन समुद्वय ढे उत्तानिते तारके गोलके यत्र तद्यथा स्यादित्युन्मील क्रियाविशेषणम् ॥६०।। विमला-साँस आ जाने के बाद निःश्वास पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं हुआ तथा मूर्छा समाप्त होने पर भी वे निश्चेष्ट पड़ी रहीं। कुछ ज्ञान होने पर उन्होंने आँखें खोली और आँसुओं से भारी कर दिये जाने के कारण कठिनाई से पुतलियाँ सीधी हुईं ॥६॥ ३० से० ब० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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