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________________ [ १३ ] इस महाकाव्य का नामकरण-संस्कार वर्ण्य विषय के आधार पर (सेतुबन्ध अथवा दशमुखवध ) किया गया है। इस महाकाव्य के प्रथम आश्वास में यात्रा वर्णन, विन्ध्यगिरि तथा सह्याद्रि का वर्णन, नवम आश्वास में सुवेलगिरि का वर्णन मनोहर ढंग से किया गया है। द्वितीय आश्वास में समुद्र, पञ्चम आश्वास में विप्रलम्भ, प्रभात, दशम आश्वास में दिवसावसान, सन्ध्या, चन्द्र, सम्भोग, एकादश आश्वास में विप्रलम्भ, द्वादश आश्वास में प्रभात तथा त्रयोदश आश्वास तक युद्ध की वर्णन-योजना की गयी है। इस महाकाव्य के प्रथम आश्वास में शरद ऋतु का वर्णन मिलता है। कथावस्तु के आरम्भ और पर्यवसान के मध्य का समय लम्बा न होने के कारण अन्य ऋतुओं के वर्णन का प्रसङ्ग आ ही नहीं सका, अतः कवि ने शरद ऋतुवर्णन में ही अपनी पूरी शक्ति लगा दी है, जिससे ऐसा शरद् ऋतु-वर्णन अन्य काव्यों में दुर्लभ है। कवि ने इसमें कवि-परम्परागत वर्ण्य विषयों का ही अपने मौलिक ढंग से ऐसा वर्णन किया है कि पाठकों को वे चिरप्राचीन विषय भी नवीन विषय का-सा आनन्द देते हैं । नमूने के लिये इन्द्रधनुष का वर्णन देखिये-नायक वर्षा भर घर रह कर शरद् ऋतु में प्रिया के स्तर पर सतत स्मरणार्थ नखक्षत कर परदेश जाता है । आरम्भ में वह नखक्षत लाल रहता है, बाद में धीरे-धीरे म्लान होने लगता है। इन्द्रधनुष भी शरद ऋतु में पहिले तो लाल रहता है, फिर धीरे-धीरे म्लान होने लगता है। अतः कवि ने इन्द्र. धनुष को रखक्षत, वर्षाकाल को नायक, दिशाओं को नायिका, पयोधर ( मेव) को पयोधर ( स्तन ) का रूप देकर इन्द्रधनुष का मनोरम वर्णन किया है ( देखिये १-२४ )। शरद् ऋतु में सरोवरों का जल घट जाने पर लोग कमल, मृणालदण्ड आदि तोड़ते एवम् उखाड़ते हैं। मृणाल उखाड़ने पर शिथिल वलय वाली पद्मिनी को रतिकालीन कर-परामर्श से शिथिल वलयवाली पदिमनी ( प्रिया) समझ कर तथा मधुमय, अतएव थोड़ा लाल और भ्रमरी के मधुर ध्वनि से युक्त कमल को उसका मुख समझ कर लोग चुम्बनादि के लिये खींचते हैं ( देखिये १-३० ) ॥ कवि ने संभोग शृङ्गार-विप्रलम्भ शृङ्गारादि रसों के प्रकरण में तदनुकूल ही माधुर्यगुणपूर्ण, समास-रहित अथवा छोटे-छोटे समास वाले मधु रपदों की तथा वीररौद्रादि रसों के प्रकरण में तदनुकूल ही ओजगुणपूर्ण, दीर्घसमास वाले औद्धत्यपूर्ण पदों की योजना कर अपने काव्य-कौशल का अच्छा परिचय दिया है। काव्य में समान रूप से 'प्रसाद' गुण की विद्यमानता कवि की सशक्त एवम् उचित पदयोजना की परिचायिका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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