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________________ [ दनुजेन्द्ररुधिरलग्ने यस्य स्फुरति नखप्रभाविच्छ । व्याकुला विपलायिता गलित इव स्तनांशुके महासुरलक्ष्मीः ।।] । महाकवि क्षेमेन्द्रकृत 'औचित्यविचारचर्चा' से ) द्वितीय पक्ष-यह ( सेतुबन्ध ) काव्य श्रीप्रवरसेन महाराज द्वारा रचाया गया ( उसके निमित्त) कालिदास द्वारा रचा गया है । इस पक्ष में इसी महाकाव्य की 'रामसेतुप्रदीप' टीका के कर्ता रामदास भूपति के वचन प्रमाण हैं धीराणां काव्यचर्चाचतुरिमविधये विक्रमादित्यवाचा यं चक्र कालिदासः कविकुमुदविधुः सेतुनामप्रबन्धम् । तद्वयाख्या सौष्ठवार्थ परिषदि कुरुते रामदासः स एव । ग्रन्थं जल्लालदीन्द्रक्षितिपतिवचसा रामसेतुप्रदीपम् ॥' ('रामसेतुप्रदीप' टीका का उपक्रम ) 'इह तावन्महाराजप्रवरसेननिमित्तं महाराजाधिराजविक्रमादित्याज्ञया निखिलकविचक्रचूडामणिः कालिदासमहाशयः मेतुबन्धप्रबन्धं चिकीर्षुर्नि विघ्नसमाप्त्यर्थ रामचन्द्रात्मकमधुमथनरूपाभीष्टदेवतानमस्कारोपदेशमुखेन मङ्गलमाचरन्नाह' ('रामसेतुप्रदीप' टीका में प्रथम स्कन्धक की अवतरणिका) 'काव्यकथा कीदृशी । अभिनवेन राज्ञा प्रवरसेनेनारब्धा । कालिदासद्वारा तस्यैव कृतिरियमित्याशयः ।' ( सेतुबन्ध १-९ की 'रामसेतु प्रदीप' टीका का अंश) 'रामसेतुप्रदीप' टीका के कर्ता रामदास भूपति ने प्रथम आश्वास के नवें स्कन्धक की टीका में लिखा है-'प्रवरसेनो भोजदेव इति केचित् ।' इसके अनुसार प्रवरसेन से तात्पर्य भोजदेव का है, किन्तु यह कथन मान्य नहीं हो सकता, क्योंकि भोजदेव से पहिले, सातवीं शतान्दी में उत्पन्न महाकवि बाण द्वारा हर्षचरित में प्रवरसेन का स्मरण किया जाना असंगत हो जाता है । __इतिहास में प्रवरसेन नाम के चार राजा मिलते हैं। दो काश्मीरी राजा हैं और दो वाकाटक वंश के हैं। __ दोनों कश्मीरी प्रवरसेन नामक राजाओं का वर्णन कह्नण ने राजतरङ्गिणी में किया है। राजतरङ्गिणी के अनुसार हिसाब लगाने पर ज्ञात होता है कि प्रवरसेन प्रथम ने काश्मीर मण्डल में ५८ ई० से ८८ ई० तक राज्य किया था। उसके दो पुत्र थे। ज्येष्ठ था हिरण्य और कनिष्ट था तोरमाण । इसी तोरमाण का पुत्र था प्रवरसेन द्वितीय । तोरमाण के मर जाने पर प्रवरसेन द्वितीय तीर्थयात्रा पर चला गया। प्रवरसेन प्रथम के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हिरण्य सिंहासनारूढ हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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