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________________ २८ - कंसवहो गंधव्या ण किमेत्थ संति ण हु किं विजंति विज्जाहरा किं वा चारु ण चारणाण अ कुँलं जिणंति णो किंणरा। किं णे सुमणाण धाम किमहो णाहो महिंदी ण से सग्गो चेअ वसूण ठाणमिणमो रम्मं मुधम्मुज्जलं ॥ ५८ कीलो-सेलग्ग-लग्ग-स्थणिअ-घण-घणुस्सिट्ठ-विहि-प्पणालीझंकारुकंठ-मोर-प्फुड-णडण-हलब्बोल-दिप्पंत-कामा। वामा वामा वि पीण-स्थण-कणअ-घडे संघर्डऊण गाढं कंठे गण्हंति कुंठेअरमिह पिहु-राओल्लिरा वल्लहा णं ॥५९ इअ बहु-वित्थआइ विसआण बहुत्तणदो सअमह गो-सआइमुवसंहरिऊण मुहं । वसहिमुवासरेइ वसुदेव-सुओ स जआ तइ खु दिवाअरो वि चरमाअले-पोलि-भुवं ।। ६० इअ कंसवहे बीओ सग्गो। [तीओ सग्गो] पच्चूसे पर-मण-सल्ल-मल्ल-जुज्झप्पत्थाव-प्पढम-पवुत्त-सुत्तहारो। पाढत्तो पडह-रवो पबोह-वेलं वोलंति भणइ व बंदि-बुंदराणं ॥१ १ MT उलं. ५T वरमामल. २ M चेअ. ३ M किल्ला. ४॥ कुंठेअरमिव, T कंठेअरमिह. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001886
Book TitleKansvaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Paniwada, A N Upadhye
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages266
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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