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________________ [७७ सातवां अधिकार घरोंमें, कभी मसान में, कभी निर्जन जगहमें और कभी भयंकर वन वगैरहमें अपने ध्यानाध्ययनकी सिद्धि के लिए सिंहकी तरह सदा निडर और सावधान रहते थे। तरह के आसनों के द्वारा तप करते थे । धर्मप्रचारके लिये हरेक देश पुर ग्राम दुर्ग और पर्वतादिमें घूमते थे । अटवी आदिमें चलतेर जहां सूर्य अस्त हो जाता था वहीं पर ध्यान करने लग जाते क्योंकि जीवोकी दया करना तो मुनियोंका प्रधान कर्तव्य होता है न ? जब चौमासा आता, प्रचण्ड वायु चलने लगती, चारों ओर भयंकर ही भयंकरसा दिखाई देता और सर्प, बी छू, मच्छर आदि जीवोंकी बहुतायत हो जाती तो भी आप शरीरसे मोह छोड़कर वृक्ष के नीचे ध्यानपूर्वक महायोग धारण करते थे। ठण्ड के दिनोमें शीतसे जले हुए वृक्षोंकी तरह होकर मैदानमें अथवा नदी, तालाबके किनारों पर रहते और ध्यानाध्ययन करते । गरमीके दिनोंमें सूर्यकी तेज किरणोंसे गरम हुई और जलती हुई अग्निकी तरह बहुत दु:सह गरम२ शिलाओं पर ध्यानरूप अमृतके पानसे आत्मानन्दमें लीन होकर सूर्यकी ओर मुंह करके कायोत्सर्ग ध्यान धरते वह केवल कर्मोके नाश करनेकी इच्छासे । ____ इसी तरह शास्त्रानुसार बहुतसे काय क्लेश, अनन्त सुखमय मोक्षकी इच्छासे वे हरवक्त किया करते थे। क्षुधा, तृषादि महा कठिन बाईस परीषह तथा हिंसक जीवोंके द्वारा दिये हुये घोरसे घोर दुःख समता भावसे सहते । आर्त रौद्रादि खोटे ध्यानोंको आत्मासे हटाकर धर्म और शुक्ल ध्यानका गुहादिमें बैठकर ध्यान करते । इन्द्रियोंको अपने वश करते। महाव्रत की शुद्धिके २५ भावनाओंका वैराग्य बढ़ाने के लियेबारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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