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छट्ठा अधिकार साथ धन्यकुमारने मस्तक झुकाकर नमस्कार किया । माता भी पुत्रको देखते ही बहुत कुछ खुश हुई और उसे गले लगाकर शुभाशीर्वाद देने लगी ।
भाई लोग धन्यकुमारको देखकर हृदयमें बहुत शर्मिन्दा हुये । यहां तक कि मुंह तक ऊंचा करना उन्हें मुश्किल हो गया । धन्यकुमार उनकी यह हालत देखकर बोला
भाईयो ! यह आपकी ही दया है जो मुझे इतनी राज्यविभूति मिली है। आप लोग सन्देह छोड़े और हृदयका खटका निकालकर शुद्ध चित्त हो जावें। क्योंकि कर्मके उदयसे अच्छा बुरा तो हुआ ही करता है।
धन्यकुमारका सीधापन देखकर उन्होंने उसकी बहुत प्रशंसा की और अपने अपराधकी क्षमा कराकर अपनेको धिक्कार देने लगे। बाद-धन्यकुमार अपने कुटुम्बियोंको लेकर बहुत ठाटबाटके साथ शहरमें होकर अपने मकान पर आया । वहां पर उन सबका स्नान भोजन वस्त्र गहने आदि से बहुत सत्कार किया गया ।
बाद धन्यकुमारने गृहस्थ धर्म के निर्वाहके लिये उन्हें सुवर्ण, रत्न, वाहन और ग्राम आदि सभी कुछ उचित वस्तु खुशीके साथ भेंट दी जिससे वे अपना निर्वाह कर सके । उपसंहार
राज्य आदि विभवका मिलना, देवता और मनुष्यों के द्वारा सत्कारका होना और बन्धु लोगोंके साथ२ बहुत कुछ सुखके कारण उत्तम२ भोगोंका भोगना यह सब पुण्यकी महिमा है । इसलिए जो सुचतुर हैं उन्हें जरूर ही पुण्यकर्म करना चाहिये ।
देखो ! धर्म गुणोंका खजाना और सबका भला करनेवाला है । बुद्धिमान लोग धर्मकी सेवा करते हैं। धर्मके
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