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________________ छठ्ठा अधिकार [ ६७ उन लोगोंके अन्याय करनेसे थोड़े ही दिनोमें जितना पुराना और नवीन धन था वह सब जाता रहा और कुपुत्रोंके तीव्र पापसे इनकी यहां तक दशा बिगड़ी कि खाने और पेट भरने तककी मुश्किल पड़ने लगी। तब धनपाल किसी कामके बहानेसे राजगृह निवासी अपनी बहनके लड़के (जो अधिक धनो था) शालिभद्र के पास गया । कहना चाहिये कि-अब फिर उसका भाग्य फिरा । वहां जाकर धन्यकुमारके मकानके नीचे बैठकर लोगोंसे शालिभद्रका मकान पूछने लगा । मकानके उपर ही धन्यकुमार बैठा हुआ था सो उसने देख कर उसी वक्त पहचान लिया कि ये मेरे पिता हैं । झटसे नीचे उतरा और पास आकर उनके चरणों में गिर पड़ा । बिचारा पिता उस समय फटे टूटे वस्त्र पहरे हुये था, गरीबके समान जान पड़ता था, सेठ होनेपर भी दरिद्री और उसमें कुछ भेद न था । __ राज कर्मचारी और पुरवासी लोग यह घटना देखकर बड़ा काश्चर्य करने लगे । धनपाल यह घटना देखकर बोला-नराधीश ! तुम पुण्यात्मा हो, तुम्हारा अखण्ड प्रताप है इसलिये सुखपूर्वक बहुत कालतक पृथ्वोका पालन करो । मैं एक दरिद्री वैश्य हूँ और तुम पृथ्वीके मालिक राजा हो इसलिये उल्टा मूझे नमस्कार करना चाहिये न कि तुम मुझे करो। यह सुनकर धन्यकुमार बोला आप ही नमस्कारके पात्र हैं। कारण आप मेरे पूज्य पिता हैं और मैं आपका छोटा पुत्र हूं । यह सुनते ही धनपालके नेत्रोंसे मारे आनन्दके आंसू गिरने लगे । पुत्रको बालेसे लगाकर वह रोने लगा । धन्यकुमारको भी यही दशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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