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________________ छठ्ठा अधिकार [ ६३ यह अपमान उन्हें सहन नहीं हुआ अत: सब मिलकर उसके साथ वैर करने लगे और किसी तरह उसके मारने का उपाय सोचने लगे । बिचारा कुमार धर्मात्मा और सरल हृदय था, सो उसे उन लोगों का कपटभाव मालुम न हुआ । उधर श्रेणिकको पुत्रीके दिनों दिन दुबली होनेका जब कारण मालूम हुआ तो विचार कर अपने पुत्र वगैरह से पूछा- देखो | यह कुमार रूपवान और गुणी है । इसके साथ गुणवतीका विवाह किया जाना उचित है या नहीं ? उनमें से अभयकुमार आगे होकर ईर्षा से कहने लगावह विदेशीं है, उसके कुल तथा जातिका कुछ ठिकाना नहीं ! क्या मालूम अच्छे हैं या बुरे ? इसलिये कन्याका देना मेरी समझ के अनुसार सर्वथा बुरा है । अभयकुमारका कहना सुनकर श्रेणिकने खुले शब्दों में कहा ➖➖➖ देखों ! गुणवतीके दिलमें तो उसींकी चाह हैं और इसीसे वह दिनोंदिन कामाग्निसे जली जा रही है । यदि ऐसी हालत में भी उसका विवाह न किया जाय तो उसके जीनेका क्या उपाय है ? -- अभयकुमारसे आखिर में न रहा गया सो उसने साफर कह ही तो दिया पिताजी ! इसका यह उपाय हो सकता है कि जबतक वह जीता रहेगा तभी तक गुणवतीका कामजनित दुःख भी बढ़ेगा ही । इसलिये.... सुनकर श्रेणिकने घृणा के साथ कहावह बिचारा निरपराध है उसको मैं कैसे मरवा सकता हूँ ? यह न्याय नहीं किन्तु अन्याय हैं । अभयकुमारने फिर कहा-अच्छा, आप कुछ न करें, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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