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________________ छट्टा अधिकार [६१ यह उसी सुचतूर भाग्यशालीका काम है । यह सुनकर राजकुमारी कुछ हंसकर बोली--तू तो बड़ी ही भाग्यवती है जो ऐसे उत्तम वर की तुझे संगति मिलेगी। एक दिन धन्यकुमार बाजार में जा रहा था सो चलते२ अपनी इच्छासे किसी सेठकी दुकान पर बैठ गया उस वक्त सेठ महाशयको व्यापार में बहुत कुछ फायदा हुआ। इसका कारण उन्होंने बैठे हुए पुण्यात्मा धन्यकुमारको समझ-. कर कहा मित्र ! मेरी एक सुन्दरी कन्या है उसका विवाह तुम्हारे ही साथ करूगा । ठीक है-धर्मात्माओंको धर्मके द्वारा सब जगह लाभ हुआ करता है । दूसरे दिन धन्य कुमार शालिभद्र सेटकी दूकानपर जाकर बैठ गया सो उसे भी व्यापार में फायदा हुआ। उसने भी इसका कारण धन्यकुमार ही को समझकर कहा भद्र ! सुभद्रा नामकी एक मेरी बहन की लड़की है उसका विवाह तुम्हारे साथ किया जावेगा । वहीं एक राजश्रेष्ठी रहता था। उसका नाम था श्रीकीति । एक दिन उसने सारे शहर में यह दिढोंरा पिटवाया कि “जो वैश्यपुत्र तीन काकिणी (दमड़ी) के द्वारा एक ही दिन में एक हजार दिनार पैदा करके मुझे देगा उसके साथ अपनी धनवती पुत्रीका विवाह कर दूंगा।" दिढोरेको सुनकर उसो वक्त धन्यकुमारने काकिणी (दमड़ो) ले लो। उसके द्वारा उसने माला लटकानेके तृण खरीदे और उन्हें माली लोगोंको देकर बदले में कई रंगके उनसे फूल ले लिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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