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श्री धन्यकुमार चरित्र त्तियें प्राप्त होती हैं विघ्न समूह तथा गृहारंभमें होनेवाले पापका नाश होता हैं ॥८॥ ___ जो गृहस्थ उत्तम पात्र सद्गुरुओंकी प्रतिदिन अज्ञान तथा मोहके नाश करनेवाली और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्रकी देनेवाली सेवा भक्ति सुश्रूषा तथा सदा आज्ञाका पालन अपने धर्म लाभके लिये किया करते हैं उसे गुरूपास्ति (गुरूसेवा) कहते हैं ॥८७॥ जो बुद्धिमान पुरूष मोक्षकी प्राप्तिके लिये सिद्धांतका अभ्यास करते हैं वह तथा सामायिक नमस्कार और ज्ञानाभ्यास आदि जितने पावन कर्म हैं ये सब स्वाध्याय कहे जाते हैं। महर्षि लोग स्वाध्यायको त्रिभुवनवति पदार्थोके देखनेके लिये प्रदीप कहते हैं क्योंकि इसके द्वारा प्रचूर अज्ञानांधकारका नाश होता हैं तथा यह पंचेन्द्रिय रूप शत्रुओंका घातक है ॥८८-८९॥
यही हेतु है कि इसी ज्ञानसे-सत्पुरूष हेयोपादेयका, भले बुरेका, देवशास्त्र और गुरुको परीक्षाका, धर्मके स्वरूपका, मोक्षमार्गका, खोटे मार्गका तथा झूठे सच्चे धर्मका स्वरूप जानने लगते हैं और जो अज्ञानी होते हैं वे जैसे जन्मांध पुरुष हाथीका ठीक२ स्वरूप नहीं जान सकते वैसे ही कभी कुछ भी नहीं जानने पाते हैं ।।९०-९१॥
इस प्रकार स्वाध्यायका फल समझकर बृद्धिमान पुरुषो को सिद्धांतशास्त्रमें प्रवेशके प्रतिबन्धक अज्ञानका नाश करनेके लिये और ज्ञानकी सम्प्राप्तिके लिये शिव-सुख साधक स्वाध्याय करना चाहिये ।।१२।।
बारह प्रकार उत्तम व्रतोंके पालन करनेकों, पंचेन्द्रिय रूप शत्रुओंके वश करनेको, तथा हृदयमें प्राणियोंकी दया करनेको गणधर भगवान संयम कहते हैं। यह संयम निर
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