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पहिला अधिकार
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धनपाल इस आश्चर्य को देखकर उसी समय राजा के पास दौड़ा गया और कहने लगा कि विभो ! मुझे उत्तम पुत्रकी प्राप्ति हुई है और साथ ही साथ बहुत धन भी मिला है । धनपाल के वचन सुनकर महाराज अवनिपाल बोले- श्रेष्ठिन् ! जिस पुत्रके पुण्य से वह धन निकला है उसका मालिक भी वही पुण्यशाली है । मुझे किसीके धनकी अभिलाषा नहीं है । महाराजकी इस प्रकार निःश्पृहता से धनपाल को बहुत सन्तोष हुआ । बाद वहांसे गृहपर आकर सौके जिनालय में महाविभूति पूर्वक समस्त कल्याण कर्मकी कारणभूत विघ्नोंके नाश करने वाली जिन भगवानकी महापूजा की । नाना प्रकार दानादिसे अपने कुटूम्बोजनोंको तथा याचक लोगोंको सन्तोषित किये । और बन्धुओंके साथ २ गीत, नृत्य वादित्र, ध्वजा, तोरणमाला प्रभृति महोत्सव पूर्वक पुत्रके उत्पन्न होनेका उत्सव किया ।।५१-६० ।।
और फिर दशवें दिन बहुत धन खर्चकर सर्वजिन चैत्यालयों में जिनेन्द्रकी पूजन की तथा बंधु लोगोंको और याचक लोगों को उनकी इच्छानुसार संतोषित किये ।
बन्धु लोगोंने विचारा कि अहो ! इसी कुलदीपक उत्तम पुत्रके उत्पन्न होने का ही तो यह फल है जो हम आज धन्य तथा कृतार्थ हुये हैं । इसी विचारसे उन्होंने पुत्रका भी शुभ नाम धन्यकुमार ही रख दिया । पश्चात् सुन्दर स्वरूपशाली, लोगोंके लोचनों का प्रेम भाजन तथा अपने योग्य अलंकारोंसे अलंकृत धन्यकुमार भी माता पितादि बन्धुओंको दुग्धपानादि · सुमधुर चेष्टाओंसे आनन्द देने लगा तथा बुद्धि, शरीर, सौंदर्यतादिसे दिनों दिन कुमुदबान्धवके समान बढ़ने लगा । और धीरे २ मुग्धावस्थाको उल्लंधन कर कुमार अवस्थामें
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