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________________ प्रकाशकका निवेदन ( नई आवृत्ति) श्रीवीरनिर्वाण संवत् २४४२, वि० सं० १९७२ में 'परमात्मप्रकाश' प्रकाशित हुआ था, जिसका सम्पादन संशोधन स्व० पं० मनोहरलालजी शास्त्रीने किया था । २१ वर्षके बाद इस ग्रन्थका द्वितीय शुद्ध संस्करण प्रकाशित हो रहा है । अबकी बार इसमें योगीन्दुदेवका योगसार मूलपाठ, संस्कृतछाया, पाठान्तर और हिन्दीटीका सहित लगा दिया है। इस संस्करणमें कई विशेषतायें है, जो पाठकों को पढ़नेसे ज्ञात होंगी । अबकी बारका संस्करण पहलेसे ड्योढ़ा बड़ा भी है । 'परमात्मप्रकाश' उपलब्ध अपभ्रंश भाषा - साहित्यका सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसका सम्पादन और संशोधन भाषा - साहित्यके नामी और परिश्रमी विद्वान् प्रो० ए० एन० उपाध्यायने किया है । दो वर्ष पूर्व आपके द्वारा 'प्रवचनसार' सम्पादित होकर इसी शास्त्रमाला द्वारा प्रकाशित हो चुका है । जिसकी प्राच्य और पाश्चात्य विद्वानोंने मुक्तकंठसे प्रशंसा की है । इस ग्रन्थके अन्तमें जो सम्मतियाँ दी गई हैं, उन्हें पढ़कर उपाध्यायजीके परिश्रमका अनुमान लगाया जा सकता है। यह आपका दूसरा प्रयत्न है। एक जो ग्रन्थकी उत्तमता और फिर उपाध्यायजीका सम्पादन इन दोनों बातोंने मिलकर 'सोनेमें सुगंध' की कहावत चरितार्थ की है । ' प्रवचनसार ' की आलोचना करते समय कई विद्वानोंने इस तरफ हमारा ध्यान खींचा कि अंग्रेजी प्रस्तावनाका हिन्दी अनुवाद भी रहे, इसलिये इसमें अंग्रेजी प्रस्तावनाका हिन्दी-सार भी लगा दिया है, जिसे स्याद्वादमहाविद्यालय काशीके अध्यापक पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने बड़े परिश्रमसे लिखा है, जिसके लिये हम उनके अत्यन्त अनुगृहीत हैं । इस ग्रंथको शुद्ध और प्रामाणिक बनाने में हमें अनेक विद्वानोंसे अनेक प्रकारका सहयोग मिला है, जिनके लिये उपाध्यायजीने अपनी प्रस्तावनामें धन्यवाद दिया है । पर मुनि पुण्यविजयजी महाराजसे हमारा पूर्व परिचय न होनेपर भी अत्यन्त प्रेमपूर्वक इस कार्यमें जो सहयोग दिया है, उसके लिये हम नहीं जानते कि किन शब्दोंमें मुनिराजका धन्यवाद करें । जिस महापुरुषकी स्मृतिमें यह शास्त्रमाला निकल रही है, उनके ग्रंथों, लेखों, पत्रों आदिका संग्रह मूल गुजरातीसे हिन्दीमें अनुवादित होकर श्रीमद्राजचन्द्र के नामसे शास्त्रमालाद्वारा शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है, जो लगभग १००० पृष्ठोंका महान् ग्रंथ होगा और जिसका मूल्य लागतमात्र रखा जायगा । यह ग्रन्थ हर दृष्टिसे अत्यन्त महत्वपूर्ण है और हम आशा करते हैं कि शास्त्रमालाके प्रेमी उसे अवश्य अपनायेंगे । भविष्यमें शास्त्रमालामें, स्वामी समन्तभद्र, महामति सिद्धसेन दिवाकर भट्टाकलंकदेव, श्रीहरिभद्रसूरि, श्री हेमचन्द्राचार्य आदि महान् आचार्योंके ग्रंथ सुसम्पादित होकर मूल शुद्धपाठ, संस्कृतटीका और प्रामाणिक हिन्दीटीका सहित निकलेंगे । २ - ३ ग्रंथ तैयार भी कराये जा रहे हैं, आगामी साल प्रकट होंगे । पाठकों से निवेदन है कि शास्त्रमालाके ग्रंथ खरीदकर और प्रचारकर हमारी सहायता करें, जिससे हम उपयोगी ग्रन्थ जल्दी जल्दी प्रकट करनेमें समर्थ होवें । बम्बई - रक्षाबंधन सं. १९९३ निवेदक – मणिलाल जौहरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001876
Book TitleParmatmaprakasha and Yogsara
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2000
Total Pages550
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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