________________
३५०
जोइंदु-विरइड [352 : २-२१३352) जं तत्तं गाण-रूवं परम मुणि-गणा णिच्च झायंति चित्ते
जं तत्तं देह-चत्तं णिवसइ भुवणे सव्व-देहीण देहे। जं तत्तं दिव्व-देहं तिहुवण-गुरुगं सिज्झए संत-जीवे
तं तत्तं जस्स सुद्धं फुरइ णिय-मणे पावए सो हि सिद्धिं ॥ २१३ ।। 353) परम-पय-गयाणं भासओ दिव्व-काओ
मणसि मुणिवराणं मुक्खदो दिव्य-जोओ। विसय-सुह-रयाणं दुल्लहो जो हु लोए जयउ सिव-सरुवो केवलो को वि बोहो ॥ २१४ ।।
352) A दिव्वदेहे ; AC गुरुवं ; B गुरवं ; B सो हु. 353) TKA कोइ for को वि.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org