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________________ ३४४ जोइंदु-विरइउ [ 281 : १-१४४281) घर-वासउ मा जाणि जिय दुक्किय-वासउ एहु । पासु कयंते मंडियउ अविचलु णिस्संदेहु ॥ १४४॥ 282) देहु वि जित्थु ण अप्पणउ तहि अप्पणउ किं अण्णु । पर कारणि मण गुरुव तुहुँ सिव-संगमु अवगण्णु ॥ १४५ ॥ 283) करि सिव-संगमु एक्कु पर जहि पाविजइ सुक्खु । जोइय अण्णु म चिंति तुहुँ जेण ण लब्भइ मुक्खु ॥ १४६ ॥ 284) बलि किउ माणुस-जम्मडा देक्खंतहँ पर सारु । जइ उहब्भइ तो कुहइ अह डज्झइ तो छारु ॥ १४७ ॥ 285) उबलि चोप्पडि चिट्ठ करि देहि सु-मिट्ठाहार । देहहँ सयल णिरत्थ गय जिमु दुजणि उवयार ॥ १४८ ॥ 286) जेहउ जजरु णरय-धरु तेहउ जोइय काउ । णरइ णिरंतरु पूरियउ किम किज्जइ अणुराउ ।। १४९ ॥ 287) दुक्खइँ पावइँ असुचियइँ ति-हुयणि सयलइँ लेवि । एयहि देहु विणिम्मियउ विहिणा वइरु मुणेवि ॥ १५० ॥ 288) जोइय देहु घिणावणउ लजहि किं ण रमंतु । णाणिय धम्में रइ करहि अप्पा विमलु करंतु ॥ १५१ ।। 289) जोइय देहु परिचयहि देहु ण भल्लउ होइ । देह-विभिण्णंउ णाणमउ सो तुहुँ अप्पा जोइ ॥ १५२ ॥ 290) दुक्खहँ कारणु मुणिवि मणि देहु वि एहु चयंति । तित्थु ण पावहि परम-सुहु तित्थु कि संत वसंति ॥ १५३ ॥ 291) अप्पायत्तउ जं जि मुहू तेण जि करि संतोसु । पर सुहु वढ चिंतंताहँ हियइ ण फिट्टइ सोसु ।। १५४ ॥ 292) अप्पहँ णाणु परिच्चयवि अण्णु ण अत्थि सहाउ । इउ जाणेविणु जोइयहु परहँ म बंधउ राउ ॥ १५५ ॥ 281) Wanting in TKM ; C पास कियंति; Bc णीसंदेहु. 282) Wanting in TKM ; c तिह अपण कि. 283) Wanting in TKM. 284) Wanting in TKM. 285) TKM चो सयल वि देहे गिरत्थ गय जिव दुजण उवयारु. c also दुजणउवयारु. 286) TKM किव किज्जइ तहिं राउ. 287) TKM तिहुवणे. 288) TKM लजइ; c धम्मइ, Brahmadeva धम्मि; TKM मुणंतु for करेतु 289) Wanting in TKM; B भल्ला. 290) Wanting in TKM ; c पावइ. 291) Wanting in TKM. 292) Wanting in TKM. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001876
Book TitleParmatmaprakasha and Yogsara
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2000
Total Pages550
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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