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________________ ३४२ जोइंदु-विरइउ [ 258 : २-१२४258) मुक्खु ण पावहि जीव तुहुँ घरु परियणु चिंतंतु । तो वरि चिंतहि तउ जि तउ पावहि मोक्खु महंतु ॥ १२४ ।। 259) मारिवि जीवहँ लक्खडा जं जिय पाउ करीसि । पुत्त-कलत्तहँ कारण तं तुहुँ एक्कु सहीसि ॥ १२५ ॥ 260) मारिवि चूरिवि जीवडा जं तुहुँ दुक्खु करीसि । तं तह पासि अगंत-गुणु अवसइँ जीव लहीसि ।। १२६॥ 261) जीव वहंतहँ णरय-गइ अभय-पदाणे सग्गु । बे पह जवला दरिसिया जहि रुञ्चइ तहि लग्गु ।। १२७ ।। 262) मूढा सयलु वि कारिमउ भुल्लर में तुस कंडि । सिव-पहि णिम्मलि करहि रइ घरु परियणु लहु छंडि ॥ १२८ ॥ 263) जोइय सयल वि कारिमउ णिकारिमउ ण कोइ । जीविं जंतिं कुडि ण गय इहु पडिछंदा जोइ ॥ १२९ ॥ 264) देउलु देउ वि सत्थु गुरु तित्थु वि वेउ वि कव्वु । बच्छु जु दीसइ कुसुमियउ इंधणु होसइ सव्वु ॥ १३०॥ 265) एकु जि मेल्लिवि बंभु परु भुवणु वि एहु असेसु । पुहविहि णिम्मिउ भंगुरउ एहउ बुज्झि विसेसु ॥ १३१ ॥ 266) जे दिवा सूरुग्गमणि ते अत्थवणि ण दिट्ट । ते कारणि वढ धम्मु करि धणि जोव्वणि कउ तिट्ठ ॥ १३२ ॥ 267) धम्मु ण संचिउ तउ ण किउ रुक्खे चम्ममरण । खज्जिवि जर-उद्देहियए णरइ पडिव्वउ तेण ॥ १३३॥ 268) अरि जिय जिण-पइ भत्ति करि मुहि सज्जणु अवहेरि। ति बप्पेण वि कज्जु णवि जो पाडइ संसारि ॥ १३४ ।। 269) अरे जिउ सोक्खे मग्गसि धम्मे अलसिय। पक्खे विणु के व उड्डण मग्गेसि मेंडय दंडसिय ॥ १३४*१ ।। 258) c मोक्ख, TKM मोक्खु ; TKM चिंतेंतु ता परु चिंतहि, पाविय णेहु महतु. 259) c कारणिण, K कारणेण. 260) TKM मारवि चूरवि, अवसे जीव लहेसि. 261) AB अभयपदाणि; TKM भावहि for रुः 262) Wanting in TKM ; c मा for i. 263) Wanting in TKM ; A जीवे जतें. 264) AC सत्थ गुरु. 265) TKM मेल्लवि बम्हु परु भुवण वि ; c वरु for परु ; TKM पुहुइविणिम्मिउ...बुज्झ. 266) TKM अत्थवणे, कारणे वद, धणे जोब्बणे.267) TKM णरए पडणउ तेण. 268) Wanting in TKM. 269) Only in sc. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001876
Book TitleParmatmaprakasha and Yogsara
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorA N Upadhye
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2000
Total Pages550
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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