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परमात्मप्रकाशः
-दोहा १११५२ ]
२२९ अथ मोहपरित्यागं दर्शयति
जोइय मोहु परिच्चयहि मोहु ण भल्लउ होइ । मोहासत्तउ सयलु जगु दुक्खु सहंतउ जोइ ।। १११ ॥ योगिन् मोह परित्यज मोहो न भद्रो भवति ।
मोहासक्तं सकलं जगद् दुःखं सहमानं पश्य ॥ १११ ॥ जोइय इत्यादि । जोइय हे योगिन् मोह परिचयहि निर्मोहपरमात्मस्वरूपभावनापतिपक्षभूतं मोहं त्यज । कस्मात् । मोहु ण भल्लउ होइ मोहो भद्रः समीचीनो न भवति । तदपि कस्मात् । मोहासत्तउ सयलु जगु मोहासक्तं समस्तं जगत् निर्मोहशुद्धात्मभावनारहितं दुक्खु सहंतउ जोइ अनाकुलत्वलक्षणपारमार्थिकसुखविलक्षणमाकुलत्वोत्पादकं दुःखं सहमानं पश्येति । अत्रास्तां तावद्धहिरङ्गपुत्रकलत्रादौ पूर्व परित्यक्तेन पुनर्वासनावशेन स्मरणरूपो मोहो न कर्तव्यः । शुद्धात्मभावनास्वरूपं तपश्चरणं तत्साधकभूतशरीरं तस्यापि स्थित्यर्थमशनपानादिकं यद्गृह्यमाणं तत्रापि मोहो न कर्तव्य इति भावार्थः॥ १११॥ अथ स्थलसंख्याबहिर्भूतमाहारमोहविषयनिराकरणसमर्थनार्थ प्रक्षेपकत्रयमाह तद्यथा
काऊण णग्गरूवं बीभस्सं दड्ढ-मडय-सारिच्छं । अहिलससि किं ण लज्जसि भिक्खाए भोयणं मिदं ॥ ११११२ ।। कृत्वा नग्नरूपं बीभत्सं दग्धमृतकसदृशम् ।
अभिलषसि किं न लजसे भिक्षायां भोजनं मिष्टम् ॥ १११*२ ॥ काऊण इत्यादि । काऊण कृता । किम् णग्गरूवं नग्नरूपं निर्ग्रन्थं जिनरूपम् । कथंभूतम् रागी द्वेषी जीवोंकी भी संगति कभी नहीं करना, यह तात्पर्य है ।।११०॥ ___ आगे मोहका त्याग करना दिखलाते हैं-[योगिन्] हे योगी, तू [मोहं] मोहको [परित्यज] बिलकुल छोड दे, क्योंकि [मोहः] मोह [भद्रः न भवति] अच्छा नहीं होता है, [मोहासक्तः] मोहसे आसक्त [सकलं जगत्] सब जगत जीवोंको [दुःखं सहमानं] क्लेश भोगते हुए [पश्य] देख ॥ भावार्थ-जो आकुलता रहित है, वह दुःखका मूल मोह है । मोही जीवोंको दुःख सहित देखो । वह मोह परमात्मस्वरूपकी भावनाका प्रतिपक्षी दर्शनमोह चारित्रमोहरूप है । इसलिये तू उसको छोड । पुत्र स्त्री आदिकमें तो मोहकी बात दूर रहे, यह तो प्रत्यक्षमें त्यागने योग्य ही है, और विषय-वासनाके वश देह आदिक परवस्तुओंका रागरूप मोह-जाल है, वह भी सर्वथा त्यागना चाहिये । अंतर बाह्य मोहका त्यागकर सम्यक् स्वभाव अंगीकार करना । शुद्धात्माकी भावनारूप जो तपश्चरण उसका साधक जो शरीर उसकी स्थितिके लिये अन्न जलादिक लिये जाते हैं, तो भी विशेष राग न करना, राग रहित नीरस आहार लेना चाहिये ॥१११॥ __ आगे स्थलसंख्याके सिवाय जो प्रक्षेपक दोहे हैं, उनके द्वारा आहारका मोह निवारण करते हैं-[बीभत्सं] भयानक देहके मैलसे युक्त [दग्धमृतकसदृशं] जले हुए मुरदेके समान रूपरहित
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