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योगीन्दुदेवविरचितः [अ० १, दोहा १०२कल्पसमाधिरूपे कारणसमयसारे स्थिता मोहमेघपटले विनष्टे सति परमात्मा छमस्थावस्थायां वीतरागभेदभावनाज्ञानेन स्वं परं च प्रकाशयतीत्येष पश्चादहंदवस्थारूपकार्यसमयसाररूपेण परिणम्य केवलज्ञानेन स्वं परं च प्रकाशयतीत्येष आत्मवस्तुस्वभावः संदेहो नास्तीति । अत्र योऽसौ केवलज्ञानाधान्तचतुष्टयव्यक्तिरूपः कार्यसमयसारः स एवोपादेय इत्यभिप्रायः॥ १०१॥ अथास्मिअवार्य पुनरपि व्यक्त्यर्व घटान्तमाह
तारायणु जलि बिपियउ णिम्मलि दीसह जेम । अप्पए णिम्मलि विषियउ लोयालोउ वि तेम ॥ १०२ ॥ तारागणः जले बिम्बितः निर्मले दृश्यते यथा ।
आत्मनि निर्मले विम्बितं लोकालोकमपि तथा ॥ १०२ ॥ तारायणु जलि विवियउ तारागणो जले विम्बितः प्रतिफलितः । कयंभूते जले । णिम्मलि दीसइ जेम निर्मले दृश्यते यथा । दार्टान्तमाह। अप्पड णिम्मलि विवियउ लोयालोउ वितेम आत्मनि निर्मलें मिथ्यावरागादिविकल्पजालरहित विम्बितं लोकालोकमपि तथा दृश्यत इति । अत्र विशेषव्याख्यानं यदेव पूर्वदृष्टान्तसूत्रे व्याख्यातमत्रापि तदेव ज्ञातव्यम् । कस्मात् । अयमपि तस्य दृष्टान्तस्य दृढीकरणार्थमिति सूत्रतात्पर्यार्थः ॥ १०२॥
अथात्मा परब येनात्मना ज्ञानेन ज्ञायते तमात्मानं स्वसंवेदनज्ञानवलेन जानीहीति कषयति
अप्पु पि पकवि बियाणइ जे अप्पे मुणिएण ।.
सो जिय-अप्पा जाणि तुहुँ जोड्य णाण-घलेण ॥ १०३ ॥ है, उसी प्रकार वीतरागनिर्विकल्प समाधिरूप कारणसमयसारमें लीन होकर मोहरूप मेघसमूहका नाश करके यह आत्मा मुनिअवस्थामें वीतराग स्वसंवेदनज्ञानकर अपनेको और परको कुछ प्रकाशित करता है, पीछे अरहंत अवस्थारूप कार्यसमयसार स्वरूप परिणमन करके केवलज्ञानसे निज और परको सब द्रव्य क्षेत्र काल भावसे प्रकाशता है । यह आत्मवस्तुका स्वभाव है, इसमें संदेह नहीं समझना । इस जगह ऐसा सारांश है, कि जो केवलज्ञान केवलदर्शन अनंतसुख अनंतवीर्यरूप कार्य समयसार है, वही आराधने योग्य है ॥१०१॥
आगे इसी अर्थको फिर भी खुलासा करनेके लिये दृष्टान्त देकर कहते हैं-यथा] जैसे [तारागणः] ताराओंका समूह [निर्मले जले] निर्मल जलमें [बिम्बितः] प्रतिबिम्बित हुआ [दृश्यते] प्रत्यक्ष दीखता है, [तथा] उसी तरह [निर्मले आत्मनि] मिथ्यात्व रागादि विकल्पोंसे रहित स्वच्छ आत्मामें [लोकालोकं अपि] समस्त लोक अलोक भासते हैं || भावार्थ-इसका विशेष व्याख्यान जो पहले कहा था, वही यहाँ पर जानना अर्थात् जो सबका ज्ञाता दृष्टा आत्मा है वही उपादेय है । यह सूत्र भी पहले कथनको दृढ करनेवाला है ॥१०२॥
आगे जिस आत्माके जाननेसे निज और पर सब पदार्थ जाने जाते हैं, उसी आत्माको तू
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