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प्राकृतव्याकरणे
उवसग्गो । पईवो । कासवो। पावं । उवमा । कविलं। कुणवं । कलावो। कवालं। महिवालो। गोवइ। तवइ । स्वरादित्येव । कंपइ' । असंयुक्तस्येत्येव । अप्पमत्तो । अनादेरित्येव । सुहेण पढइ । प्राय इत्येव । कई । रिऊ। एतेन पकारस्य प्राप्तयोर्लोपवकारयोर्यस्मिन् कृते श्रुतिसुखमुत्पद्यते स तत्र कार्यः। ___स्वर के आगे होने वाले, असंयुक्त, अनादि प का प्रायः व होता है। उदा.सवहो "तवइ । स्वर के आगे होने पर ही ( प का व होता है; पीछे अनुस्वार होने पर,प का व नहीं होता है । उदा०-) कंपइ । असंयुक्त होने पर ही (प का व होता है, प संयुक्त हो, तो व नहीं होता है । उदा०-)अप्पमत्तो । अनादि होने पर ही (प का व होता है; प आदि होने पर व नहीं होता है। उदा०-- ) सुहेण पढइ । प्रायः ही ( प का व होता है; इसलिए कभी प का व होता भी नही है। उदा.-) कई, रिऊ । तस्मात् पकार के बारे में प्राप्त होने वाले लोप और वकार इनमें जो (विकार) किए जाने पर श्र ति को (=सुनने को ) मधुर लगेगा, वही वहाँ करे ।
पाटिपरुषपरिधपरिखापनसपारिभद्र फः ॥ २३२ ॥ ण्यन्ते पटिधातौ परुषादिष च पस्य फो भवति । फालेइ फाडेइ । फरुसो। फलिहो । फलिहा । फणसो । फालिहद्दो। __ प्रयोजक प्रत्यायन्त पधातु में और परुष इत्यादि-परुष, परिध, परिखा, पनस, पारिभद्र--शब्दों में प का फ होता है । उदा०--फाले इ. 'फालिहद्दो ।
प्रभूते वः ॥ २३३ ॥ प्रभूते पस्य वो भवति । वहुत्तं । प्रभूत शब्द में प का व होता है। उदा.---वहत्तं ।
नीपापीडे मो वा ।। २३४ ।। अनयोः पस्य मो वा भवति । नीमो नीवो। आमेलो आमेडो।
नीप और आपीड शब्दों में, का म विकल्प से होता है। उदा०--नोमो... आमेडो।
पापी रः ।। २३५ ।। पापर्धावपदादौं पकारस्य रो भवति । पारधी । १. कम्पते।
२. अप्रमत्त । ३. सुखेन पठति ।
४. क्रमसे-कपि । रिपु ।
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