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प्राकृतिकव्याकरण-चसुथंपाद
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तेनातिविस्तृतदुरागमविप्रकीर्ण
शब्दानुशासनसमूह-कर्षितेन अम्पथितो निरवमं विधिवद् व्यवत्त
शब्दानुशासनमिदं मुनिहेमचंद्रः ॥ ४ ॥ राजहंसौ न भोम्भोजे क्रीडतो यावदन्यहम् । बाच्यमानं बुधस्तावत् पुस्तकं जयतादिदम् ॥ ५ ॥
( चतुर्थपाद समाप्त ) (हेमचंद्रकृत प्राकृत व्याकरण समाप्त )
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