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________________ ३८० टिप्पणियां ४.२६० अनादि असंयुक्त त का द का होना वह शौरमनी का प्रमुख वैशिष्टय है। करेध-सूत्र ४२६८ देखिए । तधा नधा-सूत्र ४.२६७ देखिए । भोमि-सूत्र ४.६९ देखिए । अय्य उत्तो-र्य का य्य होना इसलिए सूत्र ४२६६ देखिए । ४.२६३ इनो नकारस्य-इन में से नकार को। यह इन् इन् से अन्त होने वाले ( इन्नन्त ) शब्दों में से है। उदा०-कञ्चुकिन् । ४२६४ नकारस्य-यह नकार शब्द में से अन्त्य नकार है। उदा०-राजन् । भयवं-संस्कृत में भवन् ऐसा सम्बोधन का रूप है। भयव-यहाँ अन्त्य नकार का लोप हुआ है। ४.२६५ अनयोः सौ... "भवति-भवत और भगवत् के प्रयमा ए० व० में थवान और भगवान ऐसें रूप संस्कृत में होते हैं। समणे महावीरे, पागमासणेये प्रथमा एक वचन के रूप सूत्र ४०२८७ के अनुसार होते हैं। संपाइ अवं कयवंसंपादितवान्, कृतवान् । ये क. भू० धा० वि० को वत् प्रत्यय जोड़ कर बने हुए कर्तरि रूप हैं। ४.२६६ पक्षे-य का य्य न होने पर, विकल्प पक्ष में ( माहाराष्ट्री) प्राकृत के के समान र्य का ज्ज होता है। ४१२६७ अनादि असंयुक्त थ का ध होना, यह शौरसेनी का वैशिष्टय है । ४.२७० पक्ष-विकल्प पक्ष में ( माहाराष्ट्री ) प्राकृत के समान अपृत्व ऐसा वर्णान्तर होता है। ४.२७१ इय दूण-( माहाराष्ट्री) प्राकृत में क्त्वा प्रत्यय का अ आदेश है ( सूत्र २.१४६ ); उसके पूर्व सूत्र ३१५७ के अनुसार धातु के अन्त्य का इ होता है। इन दोनों के संयोग से इय ( इअ ) बना हुआ ऐसा दिखाई देता है । ( महाराष्ट्री) प्राकृत में से क्त्वा के तूण आदेश को दूण होता है ऐसा कहा जा सकता है। भोत्ता... ..."रन्ता--इन रूपों में होने वाला क्त्वा का ता आदेश हेमचन्द्र ने स्वतंत्र रूप से नहीं कहा है। .४.२७३-२७४ वर्तमानकाल में तृतीय पुरुष एकवचन के दि और दे प्रत्यय हैं। ४२७३ त्यादीनां...."द्यस्य-सूत्र ३.१३९ ऊपर की टिप्पणी देखिए । ..४.२७५ स्सि-यह शौरसेनो में भविष्यकाल का चिह्न है। ४१२७६ य्येव--सूत्र ४२८० देखिए । ४२७७ दाणि-इदानीम् शब्द में से आध इ का लोप हुआ। ४२७६ यहाँ कहा हुआ णकार का आगम यह शौरसेनी का एक वैशिष्टय है। नवीन रूप में आने वाले इस 'ण' में अगले इ अथवा ए मिश्र हो जाते हैं। उदा० जुत्तं-ण-इमं = जुत्तं णिमं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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