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टिप्पणियां
- ४२११ वोत्त ण-सूत्र २.१४६ देखिए ।
४२१४ अकार्षीत्..."चकार--सूत्र ३.१६२ ऊपर की टिप्पणी देखिए। करिष्यति कर्ता- धातु के स्य और ता भविष्यकाल के रूप ।
४.२१६ सडइ--मराठी में सडणे । पडइ--मराठी में पउणे ।
४.२२० कढइ--मराठी में कढणे । बडढइ--मराठी में वाढणे । परिअडढइयहां कड्ड के पूर्व परि उपसर्ग आया है। लायण्णं-सूत्र ११७७,१८० के अनुसार। वृधेः कृतगुणस्य--जिसमें गुण किया है ऐसे वृध धातु का।
४.२२१ वेष्ट वेष्टने--यह धातुपाठ है। वेष्टन अर्थ में वेष्ट धातु है । वेढइ-- मराठी मे वेढणे । वेढिज्जइ-बेढ धातु का कर्मणि रूप ।
४.२२४ बहवचन.. सरणार्थम्-स्विद् इस प्रकार के धातु साहित्यिक प्रयोग के अनुसार करके निश्चित करना है, यह दिखाने के लिए 'स्विदाम् यह (स्विद् शब्द का ) बहुवचन प्रयुक्त है।
४२२६ रोवइ-यहां रुद् धातु में से उ का गुण हुआ है। सूत्र ४.२३७ देखिए ।
४२२८ खाइ-मराठी में खाण, हिन्दी में खाना । खाइ-सूत्र ४.२४० के अनुसार खा धातु के आगे अ आया है। खाहिइ खाउ-खा धातु के भविष्यकाल और आज्ञार्थ के रूप । धाइ धाहिइ धाउ-धा धातु के क्रम से वर्तमानकाल, भविष्यकाल और आज्ञार्थ इनके रूप ।
४२३० परिअट्टइ–यहां अट्ट के पीछे परि उपसर्ग आया है। पलोट्टइ–यहाँ प (प्र) उपसर्ग है !
४२३१ फुट्टइ-मराठी में कुटणे । ४२३२ पमिब्लइ....."उम्मीलइ–यहाँ प्र, ति, सम् और उद् ये उपसर्ग
होते हैं।
४.२३३ निण्हवइ निहवइ-यहां नि उपसर्ग है। पसवइ-यहाँ प (प्र) उपसर्ग है।
४.२३४ ऋवर्ण-ऋ और ऋ ये वर्ण स्वर ।
४.२३७ मुवर्ण-सूत्र १.६ ऊपर की टिप्पणी देखिए । क्डित्यपि...."भवतिविङत् यानी कित् और डित् प्रत्यय यानी जिनमें से क और ङ् इत् हैं ऐसे प्रत्यय । संस्कृत में इन प्रत्यर्यो के पीछे होने वाले इ और उ इन स्वरों का गुण अथवा वृद्धि नहीं होती है। परन्तु प्राकृत में मात्र ये प्रत्यय आगे होने पर भी पिछले इ और उ इन स्वरों का गुण होता है ।
४२३८ हवइ-सूत्र ४.६० देखिए । चिणइ-सूत्र ४.२४१ देखिए । रुवइ रोवइ -सूत्र ४२२६ देखिए ।
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