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चतुर्थ पाद
टिप्पणियाँ इस पाद में प्रारम्भ में धात्वादेश कहे हैं । अनन्तर शौरसेनी इत्यादि भाषाओं के वैशिष्टय कहे हैं ।
. धात्वादेशों में मूल धातु तथा प्रेरक धातु के आदेश दिए हैं। इन धात्वादेशों में से कुछ सम्पूर्ण देशी हैं, तो झा, गा ( सूत्र ४.६ ), ठा ( ४.१६ ), अल्ली ( ४.५४ ), इत्यादि कुछ का संस्कृत से सम्बन्ध जोड़ा जा सकता है ।
४.१ इदितः-जिनमें से 5 इत् है। उदा.-कथि ( कथ+इ) में (= इत्) इत् है । प्रायः सर्व धात्वादेश वैकल्पिक हैं।
४.२ बोल्ल—मराठी में बोल, बोलणे । एतेचान्य....."प्रतिष्ठन्तामितिअन्य वैयाकरणों ने धात्वादेशों को देशी शब्द माना है । तथापि वे धात्वादेश के स्वरूप में यहां देने का कारण हेमचन्द्र ऐसा देता है—अन्य धातुओं के समान इन धात्वादेशों को भी भिन्न-भिन्न प्रत्यय लगकर उनके भिन्न-भिन्न रूप सिद्ध हो । और वैसे वे होते ही हैं । उदा०-वज्जर धात्वादेश से वज्जरिओ (क भू धा०वि०), वज्जरिऊण (पू०काधा०अ० ), वज्जरणं ( संज्ञा ), वज्जरन्त (व०का धा०वि०), बज्जरिअव्वं (वि.कधा०वि० ) इत्यादि इत्यादि ।
४.४ गलोपे-धात्वादेश में से ग का लोप सूत्र ११७७ के अनुसार होगा।
४.५ बुभुक्षे...... क्विबन्तस्य-आचार अर्थ में होने वाले विप् प्रत्यय से अन्त होनेवाले बुभुक्ष धातु को। आचार अर्थ में क्विप् प्रत्यय संज्ञाओं को जोड़कर नाम धातु सिद्ध किए जाते हैं । उदा०-अश्वति ।
४.६ णिज्झाइ-/निर् + ध्यं । झाणं गाणं-झागा से साधित संज्ञाएँ।
४७ जाण (धातु) से जाणिअ यह क भूधा०वि०, जाणि ऊम यह पू०का० धा०अ०, और जाणणं यह संज्ञा सिद्ध हुए हैं। णाऊण--यह सूत्र २.४२ के अनुसार, ज्ञा धातु से बने हुए णा के पू०का धा० अ० है।।
४.९ सद्दहमाणो-सद्दह धातु का व०का०धा०वि० (सूत्र ३.१८१ देखिए )। ४१० घोट्ट-मराठी में घोट ।
४.१६ ठाअइ-सूत्र ४.२४० के अनुसार ठा धातु के आगे 'अ' आया है। पठिओ"उट्ठाविओ-ये सर्व क०मू धा०वि० चिट्ठिऊण-यह चिट्ट धातु का पू०का धा० अ० है।
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