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________________ प्राकृतव्याकरण-तृतीयपाद ३५७ प. बच्छस्स वच्छाण-णं स० वच्छे, वच्छम्मि वच्छेसु-सुं सं० वच्छ, वच्छो, वच्छा थच्छा ( सूत्र ३.१-१५, १९, ३८ और सूत्र १२७ देखिए ) अकारान्त नपुंसकलिंगी वण शब्द प्र०, द्वि० वणं वणाणि, वणाई, वणाई सं० वण वणाणि, वणाई, वणाई ( सूत्र ३°५, २१-२६, ३७ देखिए )। अन्य रूप बच्छ के समाम । आकारान्त स्त्रीलिंगी माला शब्द प्र० माला मालाउ, मालाओ, माला द्वि० मालं मालाउ, मालाओ, माला तृ० मालाअ-इ-ए मालाहि-हि-हि पं. मालाअ-इ-ए, मालत्तो, मालाओ, मालत्तो, मालाओ, मालाउ, मालहितो, मालाउ मालासुंतो ष० मालाअ-इ-ए मालाण-णं स० मालाअ-इ.ए मालासु-स सं० माले, माला मालाउ, मालाओ, माला (सूत्र ३-४, ६-९, २७, २९-३०, ३६, ४१, १२४, १२६-१२७, १२७ देखिए) इकारान्त पुल्लिगी गिरि शब्द प्र० गिरी गिरी, गिरओ, गिरउ, गिरिणो द्वि० गिरि गिरी, गिरिणो तृ० गिरिणा गिरीहि-हि-हिं पं. गिरिणो, गिरितो, गिरीओ, गिरीउ, गिरित्तो, गिरीओ, गिरीउ, गिरीहितो, गिरीहितो गिरीसुतो ष० गिरिणो, गिरिस्स गिरीण-णं स० गिरिम्मि गिरीसुसुं सं० गिरि, गिरी गिरी, गिरओ, गिरउ, गिरिणो (सूत्र ३.५-१२, १६, १८-२०, २२, २४, १२४; १.२७ देखिए ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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