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प्राकृतव्याकरण-प्रथमपाद
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१.१०. कम्हारा-श्म के म्ह के लिए सूत्र २.७४ देखिए । १.१०२ जुण्ण ---मराठी में जुना । १.१०४ तीर्थ---इस शब्द में सूत्र २७२ के अनुसार ह आता है। १.१०८ अवरि उवरि-यहाँ अन्त्य रि के ऊपर अनुस्वारागम हुआ है ।
१.११४ ऊसूओ... .. ऊसरइ-इन उदाहरणौ में, संयुक्त व्यञ्जन में से एक अवयव का लोप होकर पिछला स्वर दीर्घ हुआ है, ऐसा भी कहा जा सकता है ।
१.११५ सदृश नियम सूत्र १.१३ में देखिए । १.११६ सदृश नियम सूत्र १.८५ में देखिए । १.१२१ भुमया--सूत्र २.१६७ देखिए ।
१.१२४ कोहण्डोकोहाली-इस वर्णान्तर के लिए सूत्र २.७३ देखिए । कोहली, कोप्परं, थोरं, मोल्लं-मराठी में-कोहका, कोपर; थोर, मोल ।
१.१२६-१४५ प्राकृत में ऋ, ऋ और ल स्वर नहीं होते हैं। प्राकृत में उन्हें कौन से विकार होते हैं, यह इन सूत्रों में कहा है।
१.१२६ तणं -मराठी में तण । कृपादिपाठात्-कृपादि शब्दों के गण में समावेश होने के कारण कृपादिगण के शब्द सूत्र १.१२८ ऊपर की वृत्ति में दिए गए हैं । परन्तु वहां द्विधाकृतम् शब्द मात्र नहीं दिया गया है।
१.१२८ दिट्ठी-मराठी में दिठी । विञ्चुओ-मराठी में विचू ।
१.१२६ पृष्ठशब्देनुत्तरपदे --पृष्ठ शब्द समास में उत्तर पद न होने पर ( यानो वह समास में प्रथम पद होने पर )।
१.१३० सिंग-हिंदी में सींग; मराठी में शिंग । धिट्ठ-मराठी में धीट । १.१:१ पाउसो-मराठी में पाउस ।
१.१३३ ऋतो वेन सह-( वृषभ शब्द में ) व के सह ऋ का । वसहोसूत्र १.१२६ देखिए ।
१.१३४ गौणशब्दस्य-(समास में ) गौण शब्द का तत्पुरुष समास में पहला पद गौण होता है । माउसिआ पिउसिआ-इन शब्दों में से 'सिआ' वर्णान्तर के लिए सूत्र २.१४२ देखिए ।
१.१३५ मातृशब्दस्य गौणस्य-सूत्र ११३४ ऊपर की टिप्पणी देखिए । माईणं-माइ (/मातृ) शब्द का षष्ठी अनेक वचन ।
१.१.१ रिज्जू उज्जू-मराठो में उजु । द्वित्व के लिए सूत्र २९८ देखिए ।
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