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________________ प्राकृतव्याकरणे उदा०-) एसा अच्छी। ( आँख अर्थ होने वाले अन्य शब्द :-) चक्खू... .."लो भणाई । वचन इत्यादि शब्दः--वयणा........ भायणाई, इत्यादि; ऐसे ये वचन इत्यादि शब्द होते हैं । ( परन्तु ) नेत्ता... ."कमलाई इत्यादि (पुल्लिगी तथा नपुंसकलिंगी रूप ) तो संस्कृत जैसे सिद्ध हुए हैं । गुणाद्याः क्लीबे वा॥ ३४ ॥ गुणादयः क्लीबे वा प्रयोक्तव्याः । गुणाई गुणा' । विहवेहिँ गुणाई 'मग्गन्ति । देवाणि देवा। बिन्दूई बिन्दुणो । खग्गं खग्गो । मंडलग्गं मंडलग्गो । कररुहं कररुहो । रुक्खाइं रुक्खा । इत्यादि । इति गुणादयः । ____ गुण इत्यादि शब्द विकल्प से नपुंसकलिग में प्रयुक्त करे । उदा.--गुणाई...... रुक्खा, इत्यादि । ऐसे ये गुण इत्यादि शब्द होते हैं । वेमाजल्याद्याः स्त्रियाम् ॥ ३५ ॥ इमान्ताजल्यादयश्च शब्दाः स्त्रियां वा प्रयोक्तव्याः । एसा गरिमा एस गरिमा। असा महिमा एस महिमा। एसा निल्लज्जिमा एस निल्लज्जिमा। एसा धुत्तिमा एस धूत्तिमा। अञ्जल्यादि। एसा' अञ्जली एस अञ्जली एस अञ्जली। पिट्ठी' पिठं । पृष्ठमित्वे कृते स्त्रियामेवेत्यन्ये । अच्छी अच्छि । पण्हा पण्हो। चोरिआ चोरिअं । एवं कुच्छी । बली । निहो । विही । रस्सी । गंठी । इत्यञ्जल्यादयः। गडडा गडडो इति तु संस्कृतवदेव सिद्धम् । इमेति तन्त्रेण त्वादेशस्य डिमा इत्यस्य पृथ्वादीम्नश्च संग्रहः। त्वादेशस्य स्त्रीत्वमेवेच्छन्त्येके । ___ इमन् ( प्रत्यय ) से अन्त होने वाले छब्द और अञ्जलि इत्यादि शब्द विकल्प से स्त्रीलिंग में प्रयुक्त करे । उदा०--एसा गरिमा ' . ' 'धुत्तिमा । अञ्जलि इत्यादि शब्दएसा अंजली, एस अंजली । पिट्ठी, पिटुं; इस पृष्ठ शब्द में ( ऋ स्वर का ) इ ऐसा स्वर किये जाने पर, वह पृष्ठ शब्द केवल स्त्रीलिंग में ( प्रयुक्त होता है ) ऐसा कुछ लोग कहते हैं । (अन्य अञ्जल्यादि शब्द)--अच्छी.... 'चोरिअं । इसी तरह कुच्छी. १. गुण । २. विभवः गुणाः मृग्यन्ते । ३. क्रम से :-देव । बिन्दु । खड्ग । मण्डलान । कररुह । वृक्ष । ४. क्रम से--गरिमन् । महिमन् । V निर्लज्ज I / धूर्त । रूप समान होने के कारण एसा और एसये सर्वनामों के रूप प्रयुक्त करके,पुलिंग और स्त्रीलिंग दिखाया गया है। ५. एसा और एस का उपयोग स्त्रीलिंग और पुलिंग दिखाने के लिए है। ६. पृष्ठ । ७. क्रम से--अक्षि । प्रश्न । चौर्य । ८. क्रम से---कुक्षि । बलि । निधि । विधि । रश्मि । ग्रंथि । ९. गर्ता, गर्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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