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________________ प्रथमः पादः क्वचित् छन्दःपूरण के लिए भी ( अनुस्वारागम होता है। उदा.-) देवनाग सुवण्ण । क्वचित् ( उपर दिए गए कुछ शब्दों में अनुस्वारागम ) नहीं भी होता है । उदा.-गिट्ठी 'मणासिला । आर्ण प्राकृत में (कुछ शब्दों के वर्णान्तर ऐसे होते हैं)मणोसिला अइमुत्तयं । क्वास्यादेर्णस्वार्वा ॥ २७ ॥ क्त्वायाः स्यादीनां च यौ णसू तयोरनुस्वारोन्तो वा भवति । क्त्वा । 'काऊणं काऊण। काउआणं काउआण । स्यादि । वच्छेणं वच्छेण । वच्छेसं वच्छेसु । णस्वोरिति किम् । १ करिअ । अग्गिणो। क्त्वा ( प्रत्यय ) और विभक्ति प्रत्यय इनमें जो 'ण' और 'सु' आते हैं, उनके अन्त में (यानी उनके ऊपर ) विकल्प से अनुस्वार आता है। उदा-त्वाप्रत्यय में :-काऊणं... .. काउआण । विभक्ति प्रत्यय में :-वच्छेणं...." वच्छेसु । ( सूत्र में ) ण और सु के बारे में (अनुस्वार आता है) ऐसा क्यों कहा है ? (कारण जहाँ ण और सु नहीं होते हैं वहाँ अनुस्वारागम नहीं होता है । उदा-); करिम; अग्गिणो। विंशत्यादेर्लुक् ॥ २८॥ विंशत्यादीनां अनुस्वारस्य लुग भवति । विंशतिः वीसा। त्रिंशत् तीसा। संस्कृतम् सक्कयं । संस्कारः सक्कारो । इत्यादि । विशति इत्यादि शब्दों में अनुस्वार का लोप होता है। उदा.-विंशति...... सक्कारो, इत्यादि । मांसादेर्वा ॥ २६ ॥ मांसादीनामनुस्वारस्य लुग् वा भवति। मासं मंसं । मासलं मंसलं। कासं कंसं। पासू पंसू। कह कह। एव एवं । नूण नूणं । इक्षाणि इआणि, दाणि दाणि। कि "करेमि कि करेमि । समुहं संमुहं । केसुअं किसुअं। सीहो सिंघो । मांस । मांसल। कांस्य । पांसु। कथम् । एवम् । नूनम् । इदानीम् । किम् । संमुख । किशुक । सिंह । इत्यादि । १. काऊणं... ..'काउआण और करिअ ये सर्व कर धातु के पूर्वकाल वाचक धातुसाधित अव्यय हैं। २. वच्छ शब्द का तृतीया एकवचन । ३. वच्छ शब्द का सप्तमी अनेक वचन । ४. अग्गि ( अग्नि ) शब्द का प्रथमा अनेक वचन, इत्यादि ( सूत्र ३.२३ देखिए)। ५. कर धातु का वर्तमान काल प्रथम पुरुष एक बचन । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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