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प्राकृतव्याकरणे
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( विकल्प-) पस में:-संरुन्धिज्जइ ... .."उवरुन्धिज्जइ। भविष्यकाल में:संरुज्झिहिइ, संरुन्धिहिइ, इत्यादि ।
गमादीनां द्वित्वम् ।। २४६ ॥ गमादीनामन्त्यस्य कर्मभावे द्वित्वं वा भवति, तत्सन्नियोग क्यस्य च लक। गम् गम्मइ गमिज्जइ। हस हस्सइ हसिज्जइ। भण भण्णइ भणिज्जइ। छुप छप्पइ विज्जइ । रुदनमोर्वः ( ४.२२५ ) इति कृतवकारादेशो रुदिरत्र पठ्यते। रुव रुपइ रुपिज्जइ। लभ् लब्भइ लहिज्जरु। कथ कत्थइ कहिज्जइ। भुज भुज्जइ भुजि जइ। भविष्यति। गम्मिहिइ गमिहिइ । इत्यादि।
कर्मणि और भावे रूपों में, गम् इत्यादि धातुओं के अन्त्य वर्ण का विकल्प से द्वित्व होता है, और उस ( द्वित्व ) के सानिध्य में क्य ( प्रत्यय ) का लोप होता है। उदा०-गम् गम्म....."छुविज्जइ । 'रुदनमोर्वः' सूत्र से जिसमें वकार आदेश किया हुआ है ऐसा रुद् धातु यहाँ लेना है । रु रुव्वइ ......"भुञ्जिज्जइ । भविष्यकाल में:गम्मिहिइ, गमिहिइ, इत्यादि ।
ह-कृ-त-ब्रामीरः ।। २५० ।। एषामन्त्यस्य ईर इत्यादेशो वा भवति तत्सन्नियोगे च क्य लक। हीरइ हरिज्जइ । करिइ करिज्जई । तीरइ तरिज्जइ । जीरइ जरिज्जइ।
( कर्मणि और भावे रूपों में, ह , कृ, तृ और ज़ ) इन धातुओं के अन्त्य वर्ण को ईर ऐसा आदेश विकल्प से होता है । और उस ( ईर ) के सानिध्य में क्य ( प्रत्यय ) का लोप होता है । उदा०-हरिइ ... "जरिज्जइ ।
अर्जेविंढप्पः ।। २५१ ॥ अन्त्यस्येति निवृत्तम् । अर्जेविढप्प इत्यादेशो वा भवति, तत्सन्नियोगे क्यस्य च लुक । विढप्पइ। पक्षे । विढविज्जइ अज्जिज्जइ ।
( इस सूत्र में अब ) अन्त्यस्य ( = अन्य वर्ण का ) इस शब्द की निवृत्ति हुई है। ( कर्मणि और भावे रूपों में ) अज् धातु को विढप्प ऐसा आदेश विकल्प से होता है,
और उसके सानिध्य में क्य ( प्रत्यय ) का लोप होता है। उदा०--विढप्पइ । (विकल्प-) पक्ष में:--विढविज्जइ, अज्जिज्जइ ।
__झो णव्व-णजौ ॥ २५२ ।। जानातेः कर्मभावे णव्व णज्ज इत्यादेशौ वा भवतः, तत्सन्नियोगे क्यस्य च लक। णव्वइ णज्जइ। पक्षे। जाणिज्जइ मूणिज्जइ। म्नज्ञोणः ( २.४२ ) इति णादेशे तु । णाइज्जइ। नञ् पूर्वकस्य । अणाइज्जइ ।
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