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तृतीयः पादः
है। उदा.-हाहाण... ..'मालासु ठि। इसी प्रकार अग्गिणो, वाउणो इत्यादि ( रूप होते हैं )।
द्विवचनस्य बहुवचनम् ।। १३० ॥ सर्वासां विभक्तीनां स्यादीनां त्यादीनां च द्विवचनस्य स्थाने बहुवचनं भवति । दोण्णि 'कुणन्ति । दुवे 'कुगन्ति । दोहिं दोहितो दोसुतो दोसु । हत्था । पाया। थणया । नयणा।
स्यादि तथा त्यादि ( इन ) सब विभक्तियों के बारे में, द्विवचन के स्थान पर बहुवचन माता है । उदा०-दोण्णि... ..'नयणा।
चतुर्थ्याः षष्ठी ॥ १३१ ।। चतुर्थ्याः स्थाने षष्ठी भवति । मुणिस्स मुणीण देइ । 'नमो देवस्स देवाण ।
चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति भाती है। उदा.-~-मुणिस्स..... देवाण ।
तादर्या ॥ १३२ ॥ तादथ्यं विहितस्य डेश्चतुर्थंकवचनस्य स्थाने षष्ठी वा भवति । देवस्स देवाय । देवार्थमित्यर्थः । डेरिति किम् । देवाण ।
'उसके लिए' ( तादर्थ्य ) इस अर्थ में कहे हुए के इस चतुर्षी एकवचनी प्रत्यय के स्थान पर षष्ठी (विभक्ति ) विकल्प से आती है। उदा०-देवस्स, देवाय (यानी ) देव के लिए ऐसा अर्थ है । डे ( प्रत्यय ) के ( स्थान पर ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण चतुर्थी बहुवचनी प्रत्यय के स्थान पर ऐसा विकल्प नही होता है। उदा०-) देवाण ।
वधाड्डाइश्च वा ॥ १३३ ।। वधशब्दात् परस्य तादर्थ्यडिद् आइ षष्ठी च वा भवति । वहाइ वहस्स वहाय । वधार्थमित्यर्थः ।
बध शब्द के आगे, तादध्यं ( दिखानेवाले ) के प्रत्यय के रित् आइ भीर षष्ठी विकल्प से होते हैं। उदा०-वहाइवहाय ( यानी ) वध के लिए ऐसा अर्थ है। १. धातु का आदेश कुण ( सूत्र ४.६५ देखिए )। २. क्रम से:-हस्त । पाद । स्तन-क । नयन । ३. मुनि । ५. नमः ।
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