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________________ ( ११ ) क् ख् देता है; व्यञ्जन क् ख् इत्यादि पद्धति नहीं दिये हैं; केवल अपभ्रंश भाषा के विवरण पिछले सन्दर्भ दिये हैं; शब्द सूत्र में देता कभी उसने वृत्ति में कभी वृत्ति में प्राकृत कभी वह कुछ प्राकृत मूलका शब्दशः भाषान्तर थोड़ा भिन्न होता हो, तो वह कोष्ठक में 'श' शब्द प्रयुक्तकर दिया है । वृत्ति में से उदाहृत शब्दोंकी पुनरुक्ति अनुबादमें न करते हुए उनमें से केबल पहला शब्द देकर आगे ३-४ बिन्दु रखकर बादमें अन्तिम शब्द दिया है । पद्यात्मक उदाहरणों के बारेमें भी ऐसा ही संक्षेप किया है इत्यादि व्यञ्जन हेमचन्द्र उनमें 'अ' स्वर मिलाकर क ख इत्यादि प्रकार से अनुवाद में भी बहुधा वैसा ही किया है। कुछ स्थानोंपर मात्र अनुवाद में से दिए हैं। वृत्ति से उदाहरणात्मक शब्दों के अर्थ प्रायः पद्यात्मक उदाहरणों के अर्थ अग्त में टिप्ठणियों में दिये हैं । में जब पिछले कुछ पद्य फिरभी आगे आये हैं, तब उनके पुनः उनका अनुवाद नहीं दिया है । (३) हेमचन्द्र कभी मूल संस्कृत है और उनका प्राकृत वर्णान्तर सूत्र में अथवा वृत्ति में कहता है, पहले संस्कृत शब्द देकर बादमें उनके प्राकृत वर्णान्तर दिये हैं; शब्द पहले रखकर बाद में वह उनके मूल संस्कृत शब्द देता है, शब्दोंके ही संस्कृत प्रतिशब्द देता है; तो कभी वह संस्कृत प्रतिशब्द देता ही नहीं है; पद्योंकी ही संस्कृत छाया उसने नहीं दी है । नहीं देता है, केवल उन्हीं स्थानोंपर संस्कृत प्राकृत वैकल्पिक शब्दों के बारेमें संस्कृत शब्द है । क्वचित् अनुवाद में भी उस प्राकृत शब्द के बाद संस्कृत प्रतिशब्द कोष्ठक में दिया है । जब पिछले प्राकृत शब्द अथवा पद्य आगे पुनः आते हैं, तब यहाँ उनके मूल संस्कृत शब्द ( या छाया ) बहुधा पुनः नहीं दिये हैं। प्राकृत अव्ययों का प्रयोग जिसमें है ऐसे शब्द समूहके अथवा पद्य के बारेमें, संस्कृत प्रतिशब्द देते समय प्राकृत के अव्ययभी कोष्ठक में रखे हैं; उनके समानार्थी संस्कृत शब्दभी कभी-कभी कोष्ठक में रखे हैं । प्राकृत शब्दरूप के विभाग में केवल मूल संस्कृत शब्दही फुटनोटमें दिया है । और फुटनोट में भी आवश्यक स्थानोंपर अगले - पिक्षले सूत्रोंके सन्दर्भ निर्दिष्ट किये । ( ४ ) तान्त्रिक / पारिभाषिक इत्यादि शब्दोंका तथा अन्य आवश्यक स्पष्टीकरण अन्तको टिप्पणियों में दिया है । पद्यात्मक उदाहरणोंका अनुवादभी टिप्पणियों में दिया है। टिप्पणियों में अनेक बार मराठी - हिन्दी में से सदृश शब्द दिये हैं । जिनपर एक बार टिप्पणी की गई है उनपर प्रायः टिप्पणी नहीं की गई है, परन्तु कभी-कभी टिप्पणियोंके अगले - पिछले सन्दर्भ निर्दिष्ट किए हैं। रूप इत्यादि के स्पष्टीकरण के लिए और अन्य कुछ कारणोंके लिए टिप्पणियों में पिछले सूत्रों के सन्दर्भ दिये गये हैं । ( ५ ) सूत्रों के सन्दर्भ देते समय, सूत्रका अनुक्रमांक और अनन्तर उस सूत्र के नीचे होनेवाला उस निर्दिष्ट किया है । इसलिए जहाँ हेमचन्द्र मूल संस्कृत शब्द शब्द पृष्ठके नीचे फुटनोट में दिया है । केवल एक बारही फुटनोटमें दिया अनेक बार अगले पहले पाद, फिर पद्यका क्रमांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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