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तृतीयः पादः
टा-उस-उरदादिदेवा तु उसेः ॥ २६ ॥
स्त्रियां वर्तमानान्नाम्नः परेषां टाङसडीनां स्थाने प्रत्येकं अत्-भात् इत् एत् इत्येते चत्वार आदेशाः सप्राग्दीर्घा भवन्ति । ङसेः पुनरेते सप्राग्दीर्घा वा भवन्ति । 'मुद्धाअ मुद्धाइ मुद्धाए २कयं मुहं ठिअं वा। कप्रत्यये तु मुद्धिनाअ मुद्धिआइ मुद्धिआए। "कमलिआअ कमलिखाइ कमकिमाए। बुद्धीअ बुद्धीआ बुद्धीइ बुद्धौए कयं विहवो ठिअं वा। सहीम सही सहीइ सहीए कयं वयणं ठिअं वा । धेश घेणूमा घेणइ घेणए कयं दुद्धं ठिसंवा । वहूअ वहूआ वहूइ वहूए कयं भवणं ठिअं वा । इसेस्तु वा । मुद्धाअ मुद्धाइ मुद्धाए। बुद्धीअ बुद्धीआ बुद्धीइ बुद्धीए । सहीम सहीआ सहीइ सहीए । घेणूक घेणूआ घेणूइ घेणूए । वहूम वहूआ वहूइ वहूए आगओ। पक्षे। मुद्धाओ मुद्धाउ मुद्धाहितो। रईनो रईउ' ० रईहिंतो। धेणू धेउ धेहिंतो। इत्यादि। शेषेदन्तवत् ( ३.१२४ ) अतिदेशात् जस्-शस-ङसि-तोदो दवामि दीर्घः (३.१२)इति दीर्घत्वं पक्षेपि भवति । स्त्रियामित्येव । वच्छेण । बच्छस्स । वच्छम्मि। वच्छाभो। हादीनामिति किम् । मुद्धा बुद्धी सही घेणू वहू।
स्त्रीलिंग मे होने वाली संज्ञा के आगे आने वाले टा, ङस्, और ङि इन प्रत्ययों के स्थान पर प्रत्येक को अ, आ, इ और ए ऐसे ये चार आदेश, उनके पूर्व होने वाला ( यानी पीचे होने वाला ) स्वर दीर्घ होकर, होते हैं। परन्तु उसि प्रत्यय के बारे में मात्र ये ( आदेश उनके ) पूर्व ( यानी पीछे ) आने वाला स्वर दोघं होकर विकल्प से होते हैं । उदा०--मुद्धाअ "" ""ठिनं वा । ( संज्ञा के आगे स्वार्थे ( क प्रत्यय होनेपर मात्र ) ऐसे रूप होते हैं )--मुद्धिआअ... ...: कमिलआए। ( अन्य शब्दों के रूप ) -बुद्धीम" ..'वहुए... -"ठि वा । उसि प्रत्यय के बारे में (ये आदेश ) विकल्प से होते हैं । उदा.---मुद्धाम... 'वहूए आगो । ( विकल्प--) पक्ष में:-मुद्धाओ'... 'धेहितो, इत्यादि । 'शेषे दन्तवत्' सूत्र से विहित किए अतिदेश के कारण, 'जस्... .. दीर्घः' सूत्र से आने वाला दीर्घत्र विकल्प पक्ष में भी होता है । स्त्रीलिंग में होने वाली ही ( संज्ञा के आगे होने वाले टा इत्यादि प्रत्ययों के स्थान पर अ इत्यादि आदेश आते हैं, अन्य लिंगी संज्ञा के आगे नहीं आते हैं। उदा.--बच्छेण....'वच्छाओ । टा, इत्यादि यानी टा, ङस् , और ङि इनके ( स्थान १. मुग्धा ।
२. कृत । ३. मुख। ४. स्थित । ५. कमलिका। ६. विभव । ७. वचन/बदन । ८. दुग्ध। ९. भवन ।
१०. रति ।
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