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________________ 3. 5. 15. ] णाहिसोत्तुघोसें गंभीरउ पत्तलपेड्ड मज्झे संकिण्णउ णासें णिजियचंपयहुलउ णायकुमारचरिउ यत्ता - पेक्खइ जहिं जहिं जे जणु तर्हि तहिं जि सुलक्खणभरियउ । Tors का कैइ जगे वम्महु सई अवयरियउ ॥ ४ ॥ 5 Arrival of Panchasugandhini at the palace with her two daughters, in search of a divine lute-expert, तायणिलणे णायणिहेलणे ता गुणगणणिहि णहणिबंधिणि आगय तेयतोयविच्छुलिय हिं बालमराललीलगयगामिणि भइ एत्थ पुरे अस्थि ण पंडिउ गरुई लहुई तणय ण लक्खइ ता विहसिवि बोलिउ पडिहारे सूहउ सरसु सूरु सुललियबुहु तुह धीयहे गुरुत्तलहुयत्तणु ता पहुभवाणि पट्टी सुंदरि पणविड राउ ताए सहुं धीयहिं उरयाल कडियलि पविउंलधीरउ । दीहबाहु समसंगयकण्णउ । गोलणिद्धमउलिये धम्मिल्लउ | दुवई - णं लावण्णपुंजु णं ससहरु णं गुणरयणरंइयउ | णं पुरवर सिरीए णरवरतणु सग्गविलासु लेइयउ ॥ Jain Education International घत्ता --इयरु भासियउ सिरिमयरकेउ पञ्चारिउ । अच्छइ जाम सयलसुहभायणे । पाडणा में पंचसुगंधिणि । सहियसहिय विहिं दिलिदिलियहिं । यदुवारि परिट्टिय कामिणि । को वि सरासइए उ मंडिउ । वीणावज्जु को विण परिक्खइ । कुलहरु भूसिउ णायकुमारें । मंदरधीरु दस सहरमुहुं । सो जाणइ वीणाविउसत्तणु । णं णवकमलोयरि इंदिदिरि । पणविसीसहिं विणयविणीयहिं । तुहुं जाणउ कुसल जाणयँ सहहिं समीरिङ ॥ ५ ॥ २७ 15 For Private & Personal Use Only 5 ९ ABCD °लु १० ABD °णिय. ११ D कई. 5.१ AB राइउ. २ B ला° ३ A णयणाणंदणे ४ I दिण्णें दिहियहिं ५ C जो ६ AB यए. ७ E जाणिय. 10 15 www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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