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________________ पुप्फयंतविरइयउ 9 The son's biith celebrated. सुंदरगहणयणणिरिक्खियउ णं णिउ अहिंसए धम्र्मु पह मलरहियई दस वि दिसाणगई महुसमउ वियंभिउ वणि शिवणे णायैरसु पसरिउ गरि जि परे " रिसिंहिं वि हियवउ रइरंजियउ कोईल कुलकलयलु उच्छलिउ भमरावलि सुमहुरु रुणुरुणइ सहुं मंगलधवलुम्भासिणिहिं दीई दाणणादियई सुकलाकलावगहणेक्करउ मायापियरई दुक्कियहरई उवर्णिय घंटाचामरधयई तहिं कुलिसकवाड गातु पिहिउँ किर धम्मु कर कंताइ स आयहं विण दीसइ जिणहं मुहु जिणवइमुहुं पई मुहु पियहे मुहु तं जोईड इह परलोयगइ घत्ता - सरसइ मुहकमले थिय भुयजुयले जयसिरि अजियमहं तहिं । उर सिरिसवरियें बालहो तुरिये कित्ति वि भई दियंतहिं ॥ ९ ॥ 10 Miracle of opening the door by the child. Jain Education International बहुवंजणलक्खणलक्खियउ | किं वण्णमिणंदणु कुसुमसरु । पम्फुलाई फलियई काणणई । संतो पवडिउ जणि जि जणे । जयपडहु पवजिउ घरि जि घरे । सोहग्गु सव्वपुरे पुंजियउ । विरहिणु विरहजलणंई जलिउ । संरधजीया इव झणझणइ । पश्चि सविलासु विलासिणिहि । मुक्कई बंदिग्गहवंदियई । [ 2.9.1 उ बुढिहिं णं सिसुस सहरउ । मणिकलससमुहदप्पणकरई । अहिं दिणि जिणभवणहो गयई । को विहडावर देवें णिहिउ | आगमणु णिरत्थर हुर्यउ महुं । रणाहो मणे उप्पण्णु दुहु । ण वि दिउ जेण विइष्णु सहु । तहो सो भत्था इव णीससइ । ――― 5 9.१ E विजण २ E जणिपर हिंसए, ३ E धम्म° ४ A णाडइ. ५ E णारिजणे. ६ E कोयल • ७ C°णें. ८ E°उलि. ९ C सुर° १० B जीयाव ११E°लु. १२E °उ. १३ E तुरिउ १४ C भवइ. For Private & Personal Use Only 10 10. १ ABD सयला. २E ° रिउ ३ C पुट्ठिहिं. ४ CID संख; E समुख दप्पणु. ५E °उ. ६ BC दइवें. ७ C हुब उ ८ CE मि. ९ E लोविड; C गरु जीविउ D णउ जीविउ . २० 5 www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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