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________________ परसिरि ण सहति दुरियहरहो ता महिवर चित्ति चमक्कियउ इय चिंतिविणिग्गउ सरवरहो जिणु हियवइ किं तहो पइसराइ देउ वि उ वंदइ मूढमइ तर्हि दिउ कंतो मुहकमलु किं सररुहु णं णं खणविलइ बुज्झिउ सपसाउ गिंगियउ पहु पभणइ रमियसउणिगण हो ता बालए उत्तरु भासियउ वंदिउ जिणमंदिरे जिणधवलु लब्भंति गामपुर पट्टणइं लब्भइ पियमाणुसु भवि जि भवे फुप्फयंत विरइयर पट्ट िगय जिणवेरघरहो । होसइ पियमहिलए तउ कियउ । गउ भवणु परायउ जिणवरहो । जो पिय पिय पिय भणंतु मरइ । गउ सणिहेलणु मणपवणगई । किं छणससि णं णं सो समलु । पियवयणहो का वि अउव्वगइ | चित्तेण चित्तु आलिंगियउ । किं णाय तुम्हई उववणहो । मई दुक्किउ देव पणासियउ । कंदष्पदम्पदलणुग्गबलु । कीलाजोग्गई गंदणवणई । संसारसमुद्दि र उद्दरवे । अण्णु वि दुलहु दंसणरयणु । दालिदिएण णावइ रयणु । अइदुलहु मणुयजम्मु लहिवि । पर इक्कु ण लब्भइ जिणवयणु जह पावपसत्तहो सहसयणु चउगइगयदुक्खलक्ख सहिवि घत्ता - जेण ण तवर्चरणु किउ दुहहरणु विसए ण मणु आँउंचियउ । अरुहु ण पुजियउ मलवजियउ तें अप्पाणउ वंचियउ ॥ ६ ॥ 7 They both visit the sage again to reassure themselves about his prophesy regarding the birth of a son. अणु वि पहियासउ परममुणि तर्हि णिणिउ होसइ मज्झु सुओ तं णिसुणिवि णरवइ हरिसियउ अण्णा दिणे मउलियणेत्तियए Jain Education International तो वयणविणिग्गय दिव्वझुणि । परबलदलवट्टणु पीणभुओ । अच्छइ पुहवीपियभोयरउ । देवि पलंकि पत्तियए । [2.6.3 १८ For Private & Personal Use Only 5 10 6. १ AB सहंत २ E जिणमंदिरहो. ३ ABCD देव° ४E अणंगि° ५ AB omit this foot . and the next. ६ C धरण ७ E आवं". 7. १ AB omit this line. 15 20 www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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