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________________ वंजण] णायकुमारचरिउ [ विट्टल वंजण-व्य ञ्जन II, 9, 1. वाहा-बाधा II, 8, 10. वंछ-वाञ्छ्, °इ IX, 10, 1. वाहिय-वाहित VII, 5, 7. वंद-वन्द्, °दिवि I, 12, 1; II, 3, 21. वि-अपि I, 8, 2. वंद-वन्द्य II, 11, 1. विइण्ण-वितीर्ण II, 10, 7; VIII, 8, 2. वंदिज-वन्द् ( कर्मणि ) °इ IV, 3, 11. विउलगिरि-विपुल° प. I, 8, 18. वंस-वंश VI, 11,4. विउलवह-विपुल+पथ VI. 1.3. वंसुब्भड वंश+उदृत IX, 19, 11. विउस-विद्वस् III, 4, 2; IX, 15, 2. वाइ-वादिन् IV, 11, 5; IX, b, 11. विउसत्तण-विद्वत्त्व III, 5, 11. वाइअ-वाचिक VII, 11:4. विओइय-वियोजित II,13,2. वाइत्त-वादित्र III, 11, 7. विओय-वियोग V, 11, 14. वाईसरि-वागीश्वरी I, 2, 6. विओयर-वृकोदर ( भीम ) पु. IV, 10, 17. वाउ-वायु III, 6, 12. विकहा-विकथा IX, 20, 14. वाउड-व्यापृत I, 9, 7. विक्खाय-विख्यात I, 13, 3. वाउवेअ वायुवेग VIII, 5, 13. विग्गह-विग्रह I, 1, 8; I, 17, 7. वाएसरि-वागीश्वरी III, 1, 4. विचित्त-विचित्र I, 6, 3; IX, 21, 34. °वाण-पान VIII, 1,9. विच्छलिय-विच्छुरित (सिक्त, टि. ) III, 5,5; वाणरोह-वानर+ओघ VIII, 16, 3. ____VII, 7, 8. वाणिज-वणिज्या I, 15,b. विच्छेय-वि + छिद् + णिच °हि III, 3, 16. वाणिय-पानीय VIII, 15, 14. विजय-पु. VII, 8, 2. वाय-वाक् I, 12, 2. विजयमहाएवी-°देवी, स्त्री IX, 1, 15. वायरण-व्याकरण I, 1, 10; III, 1, 3. विजयसीह-°सिंह, पु. VI, 15, 7. वायअ-वा+आगत VI,2, 12. विजयसेण-°ना, स्त्री, VI, 15, 7. वाया-वाचा ( वाक् ) VIII, 4, 11, 10, 10. विजयाउर-विजयपुर, न. IV, 7, 14. °वार-व्यापार IX, 20, 19. विजयाण-विजय + आज्ञा VII, 3, 10. वारण-तत्सम II, b, 3, 4. (See motes). विजयंधर-पु. IX, 1, 14. वारणिंद-वारणेन्द्र I, 9, 6. विज-विद्या III, 1,8. वारिअ-वारित III, 11, 4, विजप्पह-विद्युत्प्रभ, पु. VI, 2,2. वारुणिया-°का (वृष्टिकरी-विद्या ) VI, 6, 26. विजाउल-विद्या + कुल VI, 1, 11. वाल-व्याल, पु. IV, 1,8; VIII, 10, 1. विजाणिअ-विद्या VI, 2, 8. वालुग्ग-व्याल+उग्र VIII, 11,9. विज्जासाहण-विद्या + साधन III, 1,12. वावि-वापी II, 8, 3; II, 11, 7. विजिजमाण-वज्यिमान II, 11, 2. वासण-वासना IX, b, 3. विजु-विद्युत् VI, 14, 8. वासव-पु. I, 14, 10. विजुप्पह-विद्युत्प्रभा, स्त्री, VIII, 12, 3. वासव-तत्सम ( इन्द्र ) I, 14, 10. विजुलिया-विद्युतिका ( विद्यानाम ) VI, 6, 22. वाह-व्याध VIII, 8, 1. विजुवेय-विद्युद्वेगा, स्त्री, VIII, 12, 3. वाहर-वि+आ+हृ, °इ VI, 14, 6. विज्झ-व्यध् °इ IX, 9,1. वाहरत्तु-वा+अहोरात्रम IV, 5, 4. *विट्टल-अपवित ( अस्पृश्य ) VIII, 10, 4; - १६४ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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