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________________ पुष्यंतविरइयउ Author's own and his patron's eulogia. गोत्तमगणहर एवं सिट्ठउ नायकुमारचरितु पयासिउ सो नंदउ जो पढाइ पढावइ सो दउ जो विवरि विदावइ दउ सम्मइसासणु सम्मइ चिंतिउ चिंतिउ वरिसउ पाउसु हो संभवतु पवित्तई हो होंतु पंचकलाई हो जसु भुअणत्तए विलसउ सिवभत्ताई मि जिणसण्णार्से बंभणाई कासव रिसिगोत्तई मुद्धा वसवणामई संपज्जउ जिणभावें लइयहो मज्झु समाहिबोहि संपजउ Jain Education International सूरिपरंपराए उवइट्ठउ । इय सिरिपंचमिफलु मई भासिउ । सो नंदउ जो लिहइ लिहावइ । सो णंदउ जो भावें भावइ । णंद पय सुहु णंदउ णरवइ । उ णु होउ दीहाउसु । णिम्मलदंसणणाणचरित्तरं । रोयसोयखयकरणविहाणई । हो घरि वसुहार पवरिसउ । बे वि मयाई दुरियाणण्णासें । गुरुवयणामयपूरियसोत्तई । महु पिराई तु सुधामई । रयणत्तयविसुद्धिदंग हो । मज्झु विमल केवल उपज्जउ । घत्ता --- गण्णहो मज्झ वि दय करउ पुप्फयंतजिणणाहपियारी । म असे विदुव्वयणु वसउ वयणे सुयदेवि भडारी ॥ १ ॥ * * सुहतुंगभवणवावारभारणिव्वहणवीरधवलस्स । कंडेल गोत्तर्णहससहरस्स पयईए सोमस्स ॥ १ ॥ कुंदव्वा गन्भसमुब्भवस्स सिरिभरहभट्टतणयस्स । जसपसरभरियभुअणोयरस्स जिणचरणकमलभसलस्स ॥ २ ॥ अणवरयरइयवर जणहरस्स जिणभवणपूयणिरयस्स । जिणसासणायमुद्धारणस्स मुणिदिण्णदाणस्स ॥ ३ ॥ कलिमलकलंकपरिवज्जियस्स जियदुविहवइरिणयरस्स । कारुण्ण कंदणवजलहरस्स दीणयणसरणस्स ॥ ४ ॥ णिवलच्छीकीलासरवरस्स वाएसारणवासस्स । णिस्सेसविउ सविज्जाविणायणिरयस्स सुद्धहिययस्स ॥ ५ ॥ णणस्स पत्थणाए कव्वपिसल्लेण पहसियमुहेण । यकुमारचरितं रइयं सिरिपुप्फयंतेण ॥ ६ ॥ ११२ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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