________________ 376 STUDIES IN JAIN LITERATURE -----शृङ्गार. 1058 (अ) -शृङ्गार. पृ. 1209 ---शृङ्गार. पृ. 1220 19. अह दिट्ठ विक्कमस्मि विसिणेहसच्चविगरुअविणिवाअहआ। चितेइ सच्चभामा सुरअरुलंमहिए गअम्मिमहुमहे / / 20. तीए हिअआणुचितिअमणोरहन्भहिअरंसंगमसुहाए / हरिवहसिखेतिरकरअइवडिकुब्भत्तमउडो गओ च्चिअ चलणे // 21. उअ जावसा किलम्मइ अप्पक्खअविरह वित्थरंतानुसआ / तापत्ते जहलच्छा तहमिव्वत्तिअमणोरहो महुमअणो // 22. अस्सिअसोहाइसओ सच्चा अविभोइदेअदंसणदणिओ। जहहिअस्सपहरिसो तहहरिसविसंढुलाण अच्छीणमुहं / / 23. निम्महिअकुसुमपरिमलहिअहिअआएविमहुअरावलिचडुला / पडमं पिअम्मि दिट्ठी पच्छा तीए विसुपाअवम्मि णिसण्णा // 24. तोसेपिअम्मिरसिआ तादुमरअणम्मि विअसुउप्पलसुहआ / परिओसरसुव्वेलअणुराअंदोलिआ णिसम्मइ दिट्ठी / / 25. उअ णिअपाअवरअणेइअ अणुराअपिसुणं पिअम्मि भणते / सविसेसलद्धवसरा आढत्तो तीए परिउप्परिओसो / / ----शृङ्गार. पृ. 1220 -----शृङ्गार. पृ. 1222 ----शृङ्गार. पृ. 1223 ----शृङ्गार. पृ. 1224 000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org