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हरिभद्रसूरिकृतं धूर्ताख्यानम् । तत्थ वि ते घोडहए रमंतपिच्छाजणे अ मुइअमणे । चोरा वि पडिणिअत्ता णट्ठो गामो त्ति जंपंता ॥ णवरि तहिं पसुवग्गो चरमाणो आगओ सुवीसत्थो। इकाइ पसूइ तओ ओइलिअं चिब्भडं सहसा ॥ सा अयगरेण घत्था सो वि अ ढिंकीइणवरि ओइलिओ। सा तत्थेव णिलीणा तुंगे वडपायवे विउले ॥ तस्स अहे खंधारो णवरि ठिओ राइणो अ मत्तगओ। टिंकीपाए जमिओ वडपारोहु त्ति काऊण ॥ आउंचिअम्मि पाए कड्विजह गयवरो गुलगुलिंतो। तो रवइ मिण्ठवग्गो केणावि गओ समुक्खित्तो।। सोऊण ताण सई संपत्ता सद्दवेहिणो जोहा। इसुचावगहिअहत्था कलयलरावं करेमाणा ॥ छिण्णा' य तीइ पंखा से सीसं हथिएहिं दक्खेहिं। सा विलवंती पडिआ पश्चयसिहर व्व महिवढे । फालाविआ य रण्णा' पुढे दिट्ठो अ अयगरों विउलो । सगडस्स ईदरो विव खोडी विव महिअले पडिआ ॥ अह भणइ परवरिंदो फालिजउ एस अयगरो विउलो । एयस्स वि मा मज्झे माणुसतिरिअं च हुजाहि ॥ अह फालिअम्मि उअरे दिट्ठा सा छालिआ महाकाया । तीए वि उअरमज्झे रमणिज्जं चिन्भडं दिढें ॥ ही ही अहो महल्लं ति चिन्भडं जाव जंपए राया। तो घोडया वि रमिङ णवरि ठिया उज्जवंसकरा ॥ णिग्गंतुं च पवत्तो वालुकाओ तओ जणसमूहो। जह सलभाण य सेणा रेप्फबिलाओ विणिकग्वमइ ।। णमिऊण जिणवरिंदं तो सो सचउप्पओ' जणो सम्वो। णियणियठाणाई गओ अहं पि पत्तो इमं यरिं ॥ एअं मे अणुभूअं पञ्चश्वमिहेव माणुसे लोए। जो मे ण पत्तिआयइ धुत्ताणं देउ सो भुत्तिं ॥
॥ कण्डरीकेनोक्तं कथानकमिदम् ॥ [अथ एलाषाढोक्तं कण्डरीककथानकोत्तरम् । ] अह भणइ एलसाढो- 'पत्तिजामो " किंचि संदेहो।
पडिभणइ कंडरीओ- 'गामो कह चिभडे माओ? ॥ 1A टिंकीरिए। 2 B छिण्णाइ। 3 Bहाथीपहिं । 4A रंना। 5 B अइगरो। 6A छेलिआ । 7 A सो चउप्पओ। 8 A न ।
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