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के विभाग के विषय में झगड़ा हो तो नियमानुसार न्यायालय अथवा पञ्चायत द्वारा निर्णय करा लेना चाहिए (१२८)। यदि विभाग के विषय में कोई सन्देह उत्पन्न हो (जैसे कौन कौन सी जायदाद किस किस अधिकारी ने पाई ) तो ऐसी दशा में पञ्चों या न्यायालय के समक्ष मौखिक अथवा लिखित साक्षी द्वारा निर्णय करा लेना चाहिए ( १२८)। प्रथम ऋण चुका देना चाहिए, या ऋण चुकाने के लिए प्रबंध करके शेष सम्पत्ति के भाग कर लेना चाहिए (१३०)। वस्त्र, आभूषण, खत्तियाँ और इसी प्रकार की दूसरी वस्तुएँ विभाज्य नहीं हैं ( १३१ )। ऐसी वस्तुओं का भी, जैसे कुओं, भाग नहीं करना चाहिए ( १३२)। मवेशियों का पूरा पूरा भाग करना चाहिए न कि टुकड़ों या हिस्सों में (१३३)। भाग करने से पूर्व छोटे भाइयों का विवाह कर देना उचित है या उनके विवाह निमित्त धन का प्रबन्ध करके विभाग करना चाहिए ( १३४)। यदि एक या अधिक छोटी बहिनें हो तो प्रत्येक भाई को अपने भाग का चतुथांश उनके विवाह के लिए अलग निकाल देना चाहिए ( १३५ ) । वर्धमान नीति और अर्हन्नीति में यह नियम है। भद्रबाहु संहिता में भी ऐसा ही नियम है परन्तु उसमें केवल सहोदर बहिनों का
(१२८) अह १४ । (१२६)" १२६ । (१३०) भद्र० १११; अह १६ । (१३१ ) भद ० ११२ । (१३२)” ११२; इन्द० २२ । (१३३)" ११२।। (१३४ ) वर्ध० ७; अहं० २० । ( १३५)" ; " २०, २५ ।
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