________________
मौसी की लड़की अथवा सासू की बहिन से विवाह करना मना है (८)। गुरु की पुत्री से भी विवाह अनुचित है (६)। यदि विवाह का इकरार हो चुका है और लड़की के पक्षवाले उस पर कार्यवद्ध न रहें तो वह हर्जा देने के ज़िम्मेदार हैं (१०)। यही नियम दूसरे पक्षवालों पर भो अनुमानतः लागू होगा। परन्तु अब इन विषयों का निर्णय प्रचलित कानून अर्थात् ऐक्ट मुग्राहिदे (दि इन्डियन कौन्ट्रैक्ट ऐक्ट ) के अनुसार किया जायगा। यदि विवाह के पूर्व कन्या का देवलोक हो जाय तो ख़र्चा काटकर जो कुछ उसको ससुराल से मिला था ( गहना आदि) लौटा देना चाहिए (११)। और जो उसे अपने माइके या ननिहाल से मिला हो वह उसके सहोदर भाइयों को दे देना चाहिए (११)।
जैन-नीति के अनुसार उच्च वर्णवाला पुरुष नोच वर्ण की कन्या से विवाह कर सकता है (१२)। परन्तु शूद्र स्त्री से किसी उच्च वर्णवाले पुरुष की जो सन्तान होगी तो वह सन्तान पिता की सम्पत्ति नहीं पावेगी (१३)। केवल गुज़ारे मात्र की अधिकारी होगी (१४)। अथवा वही सम्पत्ति पावेगी जो उनके पिता ने अपनो जीवनावस्था में उन्हें प्रदान कर दी हो (१५)। शूद्र पुरुष को केवल
(८)
श्र० ११ श्लो० ३८ ।
(१०) अहं० १२७ । (११) " १२८ । (१२) अहं० ३८-४०; भद्र ३२-३३; इन्द्र० ३०-३१ । (१३) " ३१-४१; इ० न० ३२। । (१४) " ४०-४१; भद्ग० ३५-३६ । (१५) भद्र० ३५; इन्द्र० ३२-३४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org