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यदि वह अधिकारी हों तो दायाद होते हैं जैसे लघु भ्राता। औरस और दत्तक दोनों ही सपिण्ड गिने जाते हैं और इसलिए पिण्डदान करनेवाले अर्थात् वंश चलानेवाले माने गये हैं। शेष पुत्र यदि अपने वास्तविक सम्बन्ध से सपिण्ड हैं तो सपिण्ड होंगे अन्यथा नहीं। ___ दत्तक पुत्र में वह पुत्र भी सम्मिलित है जो क्रीत कहलाता है जिसका अर्थ यह है कि जो मोल लेकर गोद लिया गया हो । जिस शास्त्र ( ३) में क्रोत को अनधिकारी माना है वहाँ तात्पर्य केवल मोल लिये हुए बालक से है जो गोद नहीं लिया गया हो । नीतिवाक्यामृत ( ४ ) में जो पुत्र गुप्त रीति से उत्पन्न हुआ हो अथवा जो फेंका हुआ हो वह भी अधिकारी तथा पिण्डदान के योग्य ( कुल के चलानेवाले) माने गये हैं, परन्तु वास्तव में वे औरस पुत्र ही हैं। किसी कारण से उनकी उत्पत्ति को छिपाया गया या जन्म के पश्चात् किसी हेतु विशेष से उनको पृथक कर दिया गया था।
चारों वर्षों में एक पिता की सन्तान यदि कई भाई एकत्र ( शामिल ) रहते हो और उनमें से एक के ही पुत्र हो तो सभी भाई पुत्रवाले कहलावेंगे (५) इस प्रश्न का कि क्या वह अन्य भाई अपने लिए पुत्र गोद ले सकते हैं कोई उत्तर नहीं दिया गया है। परन्तु यह स्पष्ट है कि यदि वह एकत्र न रहते हो तो उनको पुत्र गोद लेने में कोई बाधा नहीं है। और इस कारण से कि विभाग की मनाही नहीं है और वह चाहे जब अलग-अलग हो सकते हैं यह परिणाम निकलता है कि उनको गोद लेने की मनाही नहीं है। हिन्दू-लॉ में भी ऐसा ही नियम था ( देखो मनुस्मृति :
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(३) नी० वा अध्याय ३१ ।
(५) भद्रः संहि० ३८, अह. १००।
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