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नता के साथ ( यदि ऐसे कोई रिवाज हो) मिताक्षरा कानून से हुआ न कि जैन-लॉ के अनुसार जैसा कि होना चाहिए था।
इन मुक़दमों के पश्चात् जो और मुक़दमे हुए उनमें भी प्रायः यही दशा रही। परन्तु तो भो सरकार का उद्देश्य और न्यायालयां का कर्तव्य यही है कि वह जैन-लॉ या जैन रिवाजों के अनुसार ही जैनियों के मुक़दमों का निर्णय करें। यह कोड इसी अभिलाषा से तय्यार किया गया है कि जैन-लॉ फिर स्वतन्त्रतापूर्वक एक बार प्रकाश में आकर कार्य में परिणत हो सके तथा जैनी अपने ही कानून के पाबन्द रहकर अपने धर्म का समुचित पालन कर सके।
यह प्रश्न कि हिन्दू-लों की पाबन्दी में जैनियों का क्या बिगड़ता है उत्पन्न नहीं होता है न होना ही चाहिए। इस प्रकार तो
____ * इस बात के दिखाने के लिए कि यदि जैनी अपने कानून की पाबन्दी नहीं करने पायेंगे तो किस प्रकार की हानियाँ उपस्थित होंगी एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा। जैनियों में पुत्र का अधिकार माता के आधीन रक्खा गया है जिसकी उपस्थित में वह विरसा (दाय ) नहीं पाता है। स्त्री अपने पति की सम्पूर्ण सम्पत्ति की पूर्ण स्वामिनी होती है। वह स्वतन्त्र होती है कि उसे चाहे जिसको दे डाले । उसको कोई रोक नहीं सकता, सिवाय इसके कि उसको छोटे बच्चों के पालन-पोषण का ध्यान अवश्य रखना होता है। इस उत्तम नियम का यह प्रभाव है कि पुत्र को सदाचार, शील और आज्ञापालन में श्रादर्श बनना पड़ता है ताकि माता का उस पर प्रेम बना रहे । पुत्र को स्वतन्त्र स्वामित्व माता की उपस्थिति में देने का यह परिणाम होता है कि माता की श्राज्ञा निष्फल हो जाती है। जैनियों में दोषियों की संख्या कम होना जैसा कि अन्य जातियों की अपेक्षा वर्तमान में है जैन-कानून बनानेवालों की बुद्धिमत्ता का ज्वलन्त उदाहरण है। यदि जैनियों पर वह कानून लागू किया जाता है जिसका प्रभाव माता की ज़बान को बंद कर देना या उसकी आज्ञा को निष्फल बना देना है तो ऐसी दशा में उनसे इतने उत्तम सदाचार की अाशा नहीं की जा सकती।
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