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________________ अर्थ-अपने पति के स्थान पर पुत्र गोद लेने का उसको अधिकार है; कुमार के स्थान पर दत्तक स्थापित करने की जिनागम में आज्ञा नहीं है ।। १२४ ॥ विधवा हि विभक्ता चेद्व्यय कुर्याद्यथेच्छया। प्रतिषेद्धा न कोऽप्यत्र दायादश्च कथंचन ।। १२५ ।। अर्थ-यदि विधवा स्त्री जुदी हो तो अपना द्रव्य निज इच्छानुसार व्यय कर सकती है; किसी अन्य दायाद को उसके रोकने का अधिकार नहीं ।। १२५ ॥ अविभक्ता सुताभावे कार्ये त्वावश्यकेऽपि वा । कर्तुं शक्ता स्ववित्तस्य दानमादिं च विक्रयम् ॥ १२६ ।। अर्थ-आवश्यकता के समय अन्य मेम्बरों के साथ शामिल रहनेवाली पुत्ररहित विधवा भी द्रव्य का दान तथा गिरवी वा बिक्री कर सकेगी ॥ १२६ ॥ वाचा कन्यां प्रदत्त्वा चेत्पुनर्लोभे ततो हरेत् । स दण्ड्यो भूभृता दद्याद्वरस्य तद्धनव्यये ।। १२७ ।। अर्थ-जो कोई प्राणी अपनी कन्या किसी को देनी करके लोभवश दूसरे पुरुष को देवे तो राजा उसको दण्ड दे और जो उसका खर्च हुआ हो वह प्रथम पति को दिलवा दे ।। १२७ ।। कन्यामृता व्यय शोध्य देय पश्चाच्च तद्धनम् । मातामहादिभिर्दत्तं तद्गृह्णन्ति सहोदराः ।। १२८ ।। अर्थ-यदि सगाई किये पीछे ( और विवाह से प्रथम ) कन्या मर जाय तो जो कुछ उसको दिया गया हो वह खर्च काटकर ( उसके भावी पति को) लौटा देवे। जो कुछ कन्या के पास नाना आदि का दिया हुआ द्रव्य हो वह कन्या के सहोरर भाइयों को दिया जायगा ॥ १२८ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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