________________
अर्थ-माता-पिता के मरने पश्चात् पुत्रों का समान भाग होता है। परन्तु माता-पिता में से कोई जीवित हो तो बटवारा उसके इच्छानुसार होता है ॥ १५ ॥
विभक्ता अविभक्ता वा सर्वे पुत्रा: समांशतः । पित्रोणं प्रदत्वैव भवेयुर्भागभागिनः ॥ १६ ॥
अर्थ-पृथक हों अथवा शामिल सब पुत्र पिता-माता के ऋण को बराबर-बराबर भाग में देकर हिस्से के हकदार होते हैं ॥ १६ ॥
धर्मतश्चेपिता कुर्यात्पुत्रान् विषमभागिनः । प्रमाणवैपरीत्ये तु तत्कृतस्याप्रमाणता ॥ १७ ॥
अर्थ-धर्मभाव से पिता अपना द्रव्य पुत्रों को न्यूनाधिक भी दे दे तो अयोग्य नहीं, परन्तु विपरीत बुद्धि से दे तो वह नाजायज़ होगा ।। १७ ॥
व्यग्रचित्तोऽतिवृद्धश्च व्यभिचाररतस्तु यः । द्यूतादिव्यसनासक्तो महारोगसमन्वितः ।। १८ ॥ उन्मत्तश्च तथा क्रुद्धः पक्षपातयुतः पिता । नाधिकारी भवेद् भागकरणे धर्मवर्जितः ॥ १६ ॥
अर्थ-अत्यन्त व्यग्र चित्तवाला, अत्यन्त वृद्ध, व्यभिचारी, जुआरी, खोटे चाल-चलनवाला, पागल, महारोगी, क्रोध में भरा हुआ, पक्षपाती पिता का किया हुआ विभाग धर्मानुकूल न होने के कारण मान्य नहीं है ॥ १८-१६ ॥
असंस्कृता येऽनुजास्तान संस्कृत्य भ्रातरः स्वयं । अवशिष्टं धनं सर्वे विभजेयुः परस्परम् ॥ २० ॥
अर्थ-पिता की सम्पत्ति में से बच्चों (पिता के लड़के-लड़कियों) के संस्कारों के करने के पश्चात् शेष को सब भाई बाँट लें ॥ २० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org