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________________ विभजेरन पुनद्रव्यं समांशैतिरः स्वयम् । न तत्र ज्येष्ठांगस्यापि भागः स्याद्विषमो यतः ॥१०॥ अर्थ-वे पुत्र जिन्हें पिता ने कुछ-कुछ द्रव्य देकर अपनी इच्छा से जुदे कर दिये हों और वे जो द्रव्य को इकट्ठा कर साथ मिलकर ही जीविका करते हैं। अपने आप समान भाग से द्रव्य का विभाग करें। उसमें बड़े पुत्र को अधिक भाग नहीं मिल सकता॥१०४-१०५॥ जाते विभागे बहुषु पुत्रेष्वेको मृतो यदि । विभजेरन् समं रिक्थ सभगिन्यः सहोदराः ॥१०६॥ अर्थ---विभाग हो जाने पर बहुत पुत्रों में से यदि एक का मरण हो जाय तो भाई और बहन उसका समान भाग कर सकते हैं ॥१०६॥ नोट-बहिन को यहाँ पर हिस्सा उसके विवाह के खर्च के लिए दिया गया है, क्योंकि वह वारिस नहीं है। निङ्ग ते लोभतो ज्येष्ठो द्रव्यं भातृन यवीयसः । वञ्चते राजदण्ड्यः स्यात् स भागार्हो न जातुचित् ॥१०७॥ अर्थ-लोभ के वश होकर ज्येष्ठ भाई द्रव्य को छिपावे और यदि छोटे भाइयों को ठगे तो राजा द्वारा दण्ड देने योग्य है, तथा वह अपना भाग भी नहीं पा सकता ॥१०७॥ द्यूतादिव्यसनासक्ताः सर्वे ते भ्रातरो धनम् । न प्राप्नुवन्ति दण्डयाश्च प्रत्युतो धर्मविच्युताः ।।१०८।। अर्थ-धर्म को छोड़कर द्यूतादि व्यसनों में यदि कोई भाई आसक्त हो जावे तो उसको धन नहीं मिल सकता, प्रत्युत वह दण्ड के योग्य है ।। १०८ ॥ विभागोत्तरजातस्तु पैत्र्यमेव लभेद्धनम् । तदल्पं चेद्विवाहं तु कारयन्ति सहोदराः ॥१०८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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